Thursday, 21 February 2019

लोकतन्त्र के प्रहरी युवा मतदाता


अजीत कुमार

देश जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक सवाल यह है कि देश कौन बनाता है? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थी, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक... आखिर कौन? शायद यह सब मिलकर देश बनाते होंगे.... लेकिन फिर भी एक और प्रश्न यह है कि इनमे से सर्वाधिक भागीदारी है किसकी? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसका जिक्र तक नहीं हुआ...... बात हो रही है युवाओं की.... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी है। लोकतंत्र के निर्माता और भाग्य विधाता यह युवा वर्ग ही है, इसलिए जहाँ एक तरफ भारत के लिए ख़ुशी की बात है कि हमारी जनसँख्या का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा युवाओं का है जो वर्ग सामाजिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है।
लोकतन्त्र जनता का प्रतिनिधि तन्त्र है, इसमें समस्त जन-समुदाय की सदभावना और सद्विचार प्रकट होते हैं। भारतीय लोकतन्त्र जनता की सेवा, जनता की सुरक्षा एवं जनता के अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में खामिया उत्पन्न होना, हम सबकी देन है बहुत से लोग भारतीय लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को हेय दृष्टि से देखते हैं, इसके लिए हर मतदाता को आगे आकर अपने कर्तव्य को निभाना होगा, दायित्व को पूरा करना होगा तब हम एक स्वस्थ लोकतन्त्र का निर्माण कर पाएंगे।
            आज पूरे देश की निगाहें युवाओं पर टिकी हैं क्योकि लोकतान्त्रिक निर्वाचन प्रक्रिया का मुख्य हिस्सा युवा मतदाता हैं। मतदान न करने से राष्ट्र सेवा के एक बहुत बड़े दायित्व से मुंह मोड़ लेना है, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है लेकिन हमारे सामने चुनौती यह है कि इसे और व्यापक कैसे बनाया जाये, इसके लिए मतदाताओं को आगे आकर बिना किसी भेद-भाव, निष्पक्ष, जातिपात रहित नैतिक मतदान करने की जरुरत है। मतदाताओं को शिक्षित करने एवं जागरूकता फ़ैलाने की जरुरत है, केवल चुनिन्दा लोगों की उपलब्धियों से ही भारत महान नहीं बनने वाला, महान तभी बनेगा जब बड़ी संख्या में लोग अपने जीवन में जिम्मेदारी के प्रति गम्भीर होंगे और अपने मताधिकार का सही प्रयोग करेंगे।
            प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने लोकतन्त्र को सुदृढ़ एवं स्वस्थ बनाने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करे। किसी देश की वास्तविक प्रगति तब तक नहीं हो सकती जब तक उस राष्ट्र के युवा चरित्रवान, ईमानदार, राष्ट्रभक्त और कर्तव्यनिष्ठ न हों| युवा मतदाता लोकतन्त्र के लिये रीढ़ की हड्डी के सामान हैं जब युवा आगे आयेंगे तो देश का विकास होगा, युवाओं की ताकत और समझदारी के द्वारा ही लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। युवा वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है सामान्य शब्दों में कहें तो युवा मतदाता ही वह संसाधन है जिसके बल पर राष्ट्र का गौरव है जो लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं। युवा मतदाता लोकतन्त्र के बसन्त हैं क्योकि युवा खोज और सपनों के द्वारा लोकतन्त्र को समृद्धि प्रदान कर सकता है हर किसी की नजर इन युवाओं पर टिकी होती है, युवा शक्ति के बल पर कोई भी कार्य सम्भव हो सकता है अगर हमें देश को विकास के रास्ते पर ले जाना है तो युवा मतदाताओं का योगदान जरूरी है। युवा स्वयं को जागरूक करके अपने समाज के लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करके, समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में एक प्रशिक्षक के सामान हैं।
            वर्तमान में भारत के युवाओं की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में भारत इस समय सबसे युवा देश है, यहाँ 35.6 करोड़ आबादी युवा है जबकि युवाओं की आबादी में दूसरे स्थान पर चीन 26.9 करोड़ युवाओं के साथ है। रिपोर्ट के अनुसार चीन की कुल आबादी से भारत की जनसँख्या कम होने के बावजूद भी भारत में सबसे ज्यादा युवा है भारत में 28 प्रतिशत आबादी की आयु 10 वर्ष से 24 वर्ष के बीच है। संयुक्त राष्ट्र जनसँख्या कोष (यूएनएफपीए) की विश्व जनसँख्या रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में सबसे ज्यादा युवाओं को संख्या है। इस युवा शक्ति में शिक्षा, स्वास्थ्य का निवेश करके अर्थव्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सकता है। युवाओं को उनके अधिकार दिए जाने भी जरूरी हैं क्योकि ये अपना भविष्य पाने में तभी सक्षम होंगे जब उनके पास कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और जीवन में बेहतर विकल्प मौजूद होंगे। आज के समय में दुनिया में 1.8 अरब युवा है जिनके पास दुनिया बदलने का उत्तम अवसर है। दुनिया के पास पहले इतने युवा कभी नहीं थे।
            सच कहें तो युवा मतदाता ही सही दिशा में लोकतंत्र रूपी गाड़ी को ले जाने वाले चालक है। जिस तरफ युवाओं का रुझान होता है उसी तरफ प्रगति होती है। हर एक मतदाता लोकतंत्र का प्रहरी होता है। हमारी वह पीढ़ी जिसे हम अपना भाई-बन्धु, गुरु, सलाहकार आदि नामों से संबोधित करते है इनकी भूमिका अविछिन्न है और इनकी प्रेरणा समाज को प्रेरित एवं उत्प्रेरित करती है। भारत निर्वाचन आयोग की लोकतांत्रिक सरंचना की मर्यादा बनाये रखने एंव एक स्वास्थ्य लोकतंत्र में प्रत्येक मतदाता को बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग, सम्प्रदाय, भाषा तथा सामाजिक आर्थिक दृष्टि से मतभेद किये बिना समान भागदारी का अधिकारी है मजबूत और परिपक्व लोकतंत्र के लिये महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदाता अपने अधिकारों और कर्तव्य के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूक हो।
          विश्व में जितने भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं उसमें सभी में युवाओं के लगन और बलिदान का अतुलनीय योगदान रहा है। शायद इसलिए कहा जाता है- जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। हमारी युवा शक्ति देश की तक़दीर और तस्वीर बदलने का जज्बा रखती है, एक नया आइना दिखाने की क्षमता रखती है। अनुभवी लोगो का मार्गदर्शन हमारी युवा शक्ति को अपनी सकारात्मक ऊर्जा राष्ट्रहित में लगाने को प्रेरित करता है। समय का चक्र कभी थमता नहीं और उसी के अनुरूप हमेशा परिवर्तन भी होते रहते है क्योकि युवा हमेशा प्रगति एवं बदलाव की ओर सक्रिय रहते हैं। एक सुदृढ़, संगठित और उन्नत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए भारत को पुनः विश्व-गुरु की भूमिका में स्थापित करने के लिए युवाओं को अपना सब कुछ राष्ट्र को समर्पित करना होगा, आने वाले समय में राष्ट्र एवं लोकतंत्र में युवाओं का प्रतिनिधित्व रहना भी तय है। हमें अपनी सोंच और विचारों से उन नए अवसरों की तलाश करनी होगी जो न केवल स्वयं को आगे बढाने में बल्कि दूसरों को आगे बढ़ने मददगार साबित होगी। इस कार्य के साथ-साथ युवाओं को अपनी नैतिकता का ध्यान रखना होगा।
समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना होगा कि राष्ट्र के सन्मुख आज जितनी भी चुनौतियां है हम उनका डटकर सामना करेंगे। युवाओं को अपनी भारतीय संस्कृति का ध्यान रखते हुए समाज के ज्वलन्त मुद्दों पर गहन चिंतन के साथ प्रतिक्रिया करने की जरुरत है ताकि हम अपने देश, समाज एवं राष्ट्र को नये रूप में देख सकें। सर जेम्स के शब्दों में “युवा ऐसा पक्षी है जो टूटे हुए अंडे और बेबसी से स्वन्त्रता और आशा के खुले असमान में पंख फैला रहा है क्योकि युवा खोज और सपनों के द्वारा अपने देश को समृद्धि प्रदान कर सकता है” किसी भी कार्य में सफलता की उम्मीदे उस समय और फलीभूत होने लगती है, जब उसमे योग्य व्यक्तियों के अनुभव का समावेश कर लिया जाए। स्वन्त्रता के पश्चात् देश और सामाज का नेतृत्व करने वालों का दायित्व था कि लोगो को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक, शिक्षितऔर प्रशिक्षित करना लेकिन नेतृत्वकर्ताओ  ने हमें इससे वंचित कर दिया।
सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक़उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशनसिंह आदि क्रान्तिकारी जो देश की स्वतंत्रता के नाम पर मर मिटे, इन्होंने देशभक्ति को कभी अपना पेशा नहीं बनाया, ऐसे क्रांतिकारी जो हमारे आदर्श है हमें उनके चरित्र एवं आचरण की श्रेष्ठता को अपने कर्तव्यों के माध्यम से जीवन में अपनाना होगा। वर्तमान स्थिति में देश को आवश्यकता है हमारे कठोर परिश्रम व कर्तव्यपालन की जिसके द्वारा हम समर्थ स्वराज के निर्माण में सहयोग कर सकें क्योकि युवाओं का हुजूम अपने ताकत एवं बल के द्वारा राष्ट्र और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूरकर सफल राष्ट्र के निर्माण की संज्ञा दे सकते हैं।
इसी का मुख्य कारण है कि आज भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम, प्रेरक-भाषण, देश-भक्ति के विचार कहीं गली मुहल्लों में नहीं बल्कि कालेजों एवं विश्वविद्यालयों में दिए जाते हैं जहाँ पर युवाओं को फ़ौज होती है और उसमे नए विचारों को अमल करने की उत्सुकता होती है। यही कारण है कि अन्ना-हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अनसन में युवा वर्ग अपने कालेजों को छोड़कर अन्ना जी के समर्थन में सड़क पर आ गये, वही 16 वीं लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र के निर्माण में अधिकतर युवाओं ने मतदान करके अपनी भागीदारी एवं सहभागिता का जिम्मा सम्भाला। भारत देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है कि देश के युवा आगे आकर आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी जिम्मेदारी को समझ कर बेहतर राष्ट्र के लिए अपने मत का प्रयोग करें, साथ ही प्रथम बार वोटर बने मतदाता अपने मत का प्रयोग जनतंत्र में भागीदारी के लिए करे।

Wednesday, 16 January 2019

बाल संरक्षण: एक चुनौती


विश्व के बच्चों की कुल संख्या का पाँचवा हिस्सा भारत में रहता है, अर्थात् भारत बाल जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यहां बहुत अधिक संख्या में बाल मजदूरी तथा बाल यौन उत्पीड़न पनप रहे हैं तथा एच.आई.वी. ग्रसित भारतीय बच्चों का भी विश्व में दूसरा स्थान है, यह बच्चों के शोषण एवं बाल अधिकारों के हनन को दर्शातो हैं। बच्चों के सुरक्षा के अधिकार का हर रोज उल्लघंन हो रहा है परन्तु ऐसे मामले न तो संज्ञान में आते हैं और न इनके संदर्भ में शिकायत दर्ज होती है।
          वैसे तो राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु कई नीतियां एवं कानून मौजूद है। भारतीय संविधान में भी सरकार द्वारा बाल अधिकारों के संरक्षण एवं मौलिक अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित की गई है। भारत सन 1992 से संयुक्त राष्ट्रसंघ के बाल अधिकार दस्तावेज का हस्ताक्षरी भी है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद कानूनी त्रुटियां हैं तथा इन्हें लागू करने में ढील बरती जा है इसके अतिरिक्त कुछ सामाजिक कुरीतियां एवं जनसाधारण की उपेक्षा के फलस्वरूप करोड़ों बच्चों का बचपन दांव पर लगा है।
भारत बच्चों की सुरक्षा एवं संरक्षण के मामले में कानून बनाने वाला अग्रणी देश है परन्तु जिस गति से कानून का संशोधन व निर्माण कर रहे हैं यदि उसी गति से इनके क्रियान्वयन व जागरूकता पर जोर दे दिया जाये तो प्रयास काफी सत्र्हक साबित होंगे। बाल वेश्यावृति, बालश्रम, बाल भिक्षावृत्ति जैसे कई मुद्दों का गहरा सम्बन्ध आर्थिक कारणों से है। घर या स्कूल में हिंसा जैसे अन्य मुद्दे निर्धनता, सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं और परम्पराओं से ज्यादा करीब से जुड़े हैं, प्रायः बच्चों की तस्करी जैसे मामलें में अपराधी वृत्ति भी शामिल रहती है। बाल संरक्षण के प्रति जनसाधारण में प्रतिबद्धता का संचार आवश्यक है। अब सभ्य समाज के हर व्यक्ति, विशेषतः बाल सुरक्षा से संम्बंधित लोगों को बाल सुरक्षा के प्रति जानकारी, इन पर अमल तथा जागरूकता का दृढ संकल्प लेना होगा जिससे हम बाल संरक्षण के अधिकार का सपना साकार कर सकते हैं।
          भारतीय संविधान में बच्चों के प्रति अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता व्यक्त की है, संविधान देश का मूल कानून है जिसके अंतर्गत मौलिक अधिकार तथा राज्य के लिए दिए निर्देश सम्मिलित है। साथ ही अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य को बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने,  अनुच्छेद 21 (A) में 06-14 वर्ष कि आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्राविधान,  अनुच्छेद 23 में किसी भी प्रकार के मानव व्यापार विशेषकर बाल व्यापार पर प्रतिबन्ध व अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को जोखिम भरे श्रम करने को प्रतिबन्धित किया गया है,  संविधान में प्रतिपादित मैलिक अधिकारीं के अनुसार यह सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा उनके अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में न्याय हेतु न्यायालय जा सकते हैं। साधारणतः बाल संरक्षण एवं बाल अधिकारों की पूर्ति का दायित्व राज्य सरकार पर है।
          देश की आजादी के 70 वर्ष बाद भी बच्चों में कुपोषण, स्वास्थ्य, हिंसा, शिक्षा, शोषण से सुरक्षा आदि मामलों में इतने संसाधन होने के बावजूद भी दिन पर दिन आंकड़ों में वृद्धि हो रही है, जो की जनसँख्या वृद्धि की तुलना में कहीं ज्यादा है, अगर देखा जाये तो शहरी क्षेत्र में बाल अपराध के 30 प्रतिशत के आस पास ही मामले अभिभावक, परिजन या स्वयं बच्चों द्वारा रिपोर्ट किये जा रहे है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह प्रतिशत न के बराबर है, अगर मामले रिपोर्ट भी होते हैं तो सिर्फ छेड़-छाड़, बाल विवाह व रेप के होते हैं, सोचने का विषय है क्या इसके अलावा अन्य किसी तरह के अपराध इन क्षेत्रों में नहीं होते। शायद आज भी परम्परागत जीवन शैली, संस्कार, रुढियों के चलते हम अन्य को अपराध में नहीं गिनते, जरुरत है जागरूकता की बच्चों को अपना पराया नहीं बल्कि अच्छा और बुरा की पहचान कराने की। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की 2017 की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश में 53.22 फीसदी बच्चों को यौन शोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा, जिसमें से 52.94 प्रतिशत लड़के व 47.06  प्रतिशत लड़कियां इन यौन उत्पीड़न की घटनाओं का शिकार हुए     
बाल सुरक्षा दिन पर दिन एक चुनौती के रूप में उभर रहा है, आधुनिक युग में सोशल मीडिया साइबर अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं जिसमे बच्चा शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्रताड़ित होता है, हाल ही ब्लू व्हेल गेम ने विश्व के कई देशों में किशोरों की जान ले ली। साइबर अपराध में अधिकतर व्यस्क या उम्रदराज लोगों के द्वारा चैटिंग, सन्देश के जरिये ब्लैकमेल व अपने जाल में फंसाया जा रहा है, जिसका परिणाम यह है कि बच्चे इस कुचक्र में फंसकर अपना घर छोड़ने को विवश हो जाते हैं।       
अगर देश में बालश्रम की बात की जाये तो यहाँ बाल मजदूरी एक बड़ी समस्या है। कहने को तो भारत में बच्चो को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन आज भी इन्ही बच्चों से गुलामो की तरह काम लिया जाता है। किताब-कलम थामने की उम्र में आज भी करोड़ो बच्चे घरों में, कारखानों में और फैक्टरियों में गुलामो की ज़िन्दगी बिता रहे है, बाल मजदूरी, सफाई, खाना बनाने के अलावा बुजुर्गो की देखभाल कर रहे है। गंभीर बात यह है की इन बच्चो का शारीरिक और मानसिक शोषण भी हो रहा है। जिस उम्र में बच्चे सपनो की दुनिया बुनते है उसी उम्र में आज करोड़ो बच्चे दूसरों के सपने पूरे करने में लगे हुए है। बाल मजदूरी खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कई क़ानून बनाये गए लेकिन पुनर्वासन की रणनीति सुदृढ़ न होने से कानून सिर्फ नियोक्ता के लिए बन गया। बालश्रम की समस्या भारत में नही दुनिया के कई देशो में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है, जिसका समाधान बहुत आवश्यक है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित होने के बावजूद भी भारत में कई जगह आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप थोड़े से पैसो के लिए आने बच्चो को ऐसे ठेकेदारो के हाथों बेच देते है जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलो, कोठियों तथा अन्य कारखानों पर काम पर लगा देते है।
बाल भिक्षावृत्ति की मामलों में मौसमी बृद्धि देखने को मिल रही है ऐसा क्या कारण है कि सडकों पर अचानक बच्चों की बाढ़ सी आ जाती है, जो इस चकाचौंध में आती जाती लग्जरी गाड़ियों के शीशे पर हाथ मारकर, तो कभी पेट की तरफ इशारा करके अपनी परिस्थितियों का हवाला देकर भीख मांगते नजर आते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी एवं आर्थिक असमानता अभी भी बड़ी समस्या है। कभी कभी 12-13 साल की बालिका की गोद में एक दुधमुहा बच्चा थमा दिया जाता है, ताकि लोगों की संवेदना पैदा हो और भीख में पैसे मिल जाएँ। कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन बाल भिक्षावृति को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास इतने छिटपुट होते हैं कि कोई बदलाव नही आ पाता, प्रशासन और कानून भी इनके आगे बौना साबित होता है कि दर्ज़न बच्चे जब मुक्त कराये जाते हैं उससे पहले सैकड़ों बच्चे इसमें शामिल हो जाते हैं। सरकार ने इस समस्या के निराकरण के लिये कई योजनाए चलायी परन्तु कही न कहीं हमारे समाज को भी इस समस्या के लिए हल निकालना होगा।
हमें इस बच्चों की मदद एवं सहयोग के लिए कदम उठाना होगा उन्हें क्षणिक नहीं बल्कि जीवनपर्यंत सुख देना होगा, उनको भिक्षा नहीं बल्कि शिक्षा देनी होगी। बाल भिक्षावृत्ति जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए समाज की अहम भूमिका होनी चाहिए। समाज के द्वारा भीख मांगने वाले बच्चों को भीख नहीं देनी चाहिए क्योकि वह उनके लिए भिक्षा नहीं बल्कि जहर का काम करती है। साथ ही सामाजिक भागीदारी की बदौलत सरकार पर बाल भिक्षावृत्ति को रोकने व उनको उचित सुविधा देने के लिए दबाव डाला जा सकता है परन्तु उसके लिए समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी एंव सहयोग देना होगा जिम्मेदारी समझनी होगी। 
          बाल शोषण दूर करने के लिए राजनैतिक व सामाजिक इच्छाशक्ति की सख्त जरूरत है। इसी से जुड़ी हुई दूसरी चुनौतियां जैसे अच्छे कानून का अभाव, उन्हें सही से लागू न करा पाना, शिक्षा के प्रति जिम्मेदारी का अभाव हैं। बच्चों के अधिकारों के संरक्षण व सुरक्षा की जिम्मेदारी हर स्तर पर सक्रिय रूप से निभानी होगी जिसके लिए यूरी ब्रोनफ्रेनब्रेनर का संरक्षण तंत्र सिद्धान्त वर्तमान में लाभकारी साबित हो रहा है जो सूक्ष्मतन्त्र, मध्यतंत्र, दीर्घतन्त्र, महातंत्र का विभाजन है जो कि यह दर्शाता है कि जब पर्यावरणीय सुरक्षा तन्त्र विफल होता है तो बच्चे असुरक्षित हो जाते हैं और उनके संरक्षण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।    
©अजीत कुमार

Monday, 22 October 2018

बालश्रम में झुलसता बचपन

        भारत देश के बारे में कहा जाए तो यहाँ बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। कहने को तो भारत में बच्चो को भगवन का रूप माना जाता है लेकिन आज भी इन्ही बच्चों से गुलामो की तरह काम लिया जाता है किताब-कलम थामने की उम्र में आज भी करोड़ो बच्चे घरों में, कारखानों में और फैक्टरियों में गुलामो की ज़िन्दगी बिता रहे है; बाल मजदूरी, सफाई, खाना बनाने के अलावा, बुजुर्गो की देखभाल कर रहे है गंभीर बात यह है की इन बच्चो का शारीरिक और मानसिक शोषण भी होता है परिवार के बीच रहते हुए भी इनके साथ परिवार के सदस्य की तरह बर्ताव नहीं किया जाता है कैसा हो अगर कोई आपके सपने छीन ले? इस बात को सुनकर की शायद आपको डर लगता होगा लेकिन अपने परिवार से कोसो दूर ये बच्चे बड़े-बड़े घरों में, फैक्टरियों में, कारखानों में, दुकानो में बाल मजदूरी कर रहे है; बाल मजदूरी कर रहे इन बच्चों को वेतन नहीं दिया जाता और साथ ही शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है जिस उम्र में बच्चे सपनो की दुनिया बुनते है उसी उम्र में आज करोड़ो बच्चे दूसरों के सपने पूरे करने में लगे हुए है बाल मजदूरी खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कई क़ानून बनाये गए लेकिन होता कुछ भी नहीं इतनी जागरूकता के बाद भी बच्चे आज भी बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर है.......
‌        बालश्रम की समस्या भारत में नही दुनिया के कई देशो में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है, जिसका समाधान बहुत आवश्यक है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ इस अधिनियम के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चो की नियुक्ति निषेध है वर्तमान में भारत में कई जगहों अर आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप थोड़े से पैसो के लिए आने बच्चो को ऐसे ठेकेदारो के हाथों बेच देते है जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलो, कोठियों तथा अन्य कारखानों पर काम पर लगा देते है बच्चो को बाल मजदूरी से की समस्या से निकालने के लिए कई क़ानून बनाये गए है आज कई संगठन बच्चो को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर उन्हें दूसरे बच्चो की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिला रहे है हाल ही में चाइल्डलाइन लखनऊ द्वारा बालिका सौम्या (बदला हुआ नाम) उम्र 12 वर्ष को बालश्रम से मुक्त कराकर बाल कल्याण समिति के माध्यम से स्थानीय बालगृह में आश्रय दिलाया गया जहाँ उसकी  काउंसिलिंग करायी गयी। काउंसिलिंग के बाद पता चला कि वह बालिका कोसो दूर अपने चाचा द्वारा छोटे से गाँव से लखनऊ सुनहरे सपने दिखाकर, पढ़ने-लिखने, बड़े घर रहने का झांसा देकर लाया गया। वहां उसे ठेकेदारो द्वारा बेच दिया जाता है और उससे घर में बाल मजदूरी, साफ़-सफाई कराई जाती थी और शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया जाता था। परिवार में रहते हुए भी उसे शिक्षा के नाम पर मजदूरी, कपड़ो के नाम पर उतरन, रोटी के नाम पर झूठन और वेतन भी नही दिया जाता था। क्या हो गया है हमारे समाज को? सरकार के प्रयासो के साथ-साथ बालश्रम को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज और आम नागरिको को आगे आना होगा और यह समझना होगा जो शिक्षा वह अपने बच्चो को दिला रहे है वह दूसरे बच्चो का भी अधिकार है जो बाल मजदूरी कर रहे है भले ही हम बच्चों के अधिकार और विकास के लिए कितने ही दावे क्यों करे, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है....
 साक्षी निगम- इंटर्न चाइल्डलाइन लखनऊ