विश्व के बच्चों की कुल संख्या का पाँचवा हिस्सा भारत में
रहता है, अर्थात् भारत बाल जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
यहां बहुत अधिक संख्या में बाल मजदूरी तथा बाल यौन उत्पीड़न पनप रहे हैं तथा एच.आई.वी.
ग्रसित भारतीय बच्चों का भी विश्व में दूसरा स्थान है, यह बच्चों के शोषण एवं बाल अधिकारों के हनन को दर्शातो हैं। बच्चों के
सुरक्षा के अधिकार का हर रोज उल्लघंन हो रहा है परन्तु ऐसे मामले न तो संज्ञान में
आते हैं और न इनके संदर्भ में शिकायत दर्ज होती है।
वैसे तो
राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु कई नीतियां
एवं कानून मौजूद है। भारतीय संविधान में भी सरकार द्वारा बाल अधिकारों के संरक्षण
एवं मौलिक अधिकारों की पूर्ति सुनिश्चित की गई है। भारत सन 1992 से संयुक्त
राष्ट्रसंघ के बाल अधिकार दस्तावेज का हस्ताक्षरी भी है। इन तमाम प्रयासों के
बावजूद कानूनी त्रुटियां हैं तथा इन्हें लागू करने में ढील बरती जा है इसके
अतिरिक्त कुछ सामाजिक कुरीतियां एवं जनसाधारण की उपेक्षा के फलस्वरूप करोड़ों
बच्चों का बचपन दांव पर लगा है।
भारत बच्चों की सुरक्षा एवं संरक्षण के मामले में कानून
बनाने वाला अग्रणी देश है परन्तु जिस गति से कानून का संशोधन व निर्माण कर रहे हैं
यदि उसी गति से इनके क्रियान्वयन व जागरूकता पर जोर दे दिया जाये तो प्रयास काफी
सत्र्हक साबित होंगे। बाल वेश्यावृति, बालश्रम, बाल भिक्षावृत्ति जैसे कई मुद्दों
का गहरा सम्बन्ध आर्थिक कारणों से है। घर या स्कूल में हिंसा जैसे अन्य मुद्दे
निर्धनता, सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं और परम्पराओं से ज्यादा करीब से जुड़े हैं,
प्रायः बच्चों की तस्करी जैसे मामलें में अपराधी वृत्ति भी शामिल रहती है। बाल
संरक्षण के प्रति जनसाधारण में प्रतिबद्धता का संचार आवश्यक है। अब सभ्य समाज के
हर व्यक्ति, विशेषतः बाल सुरक्षा से संम्बंधित लोगों को बाल सुरक्षा के प्रति जानकारी, इन पर अमल तथा जागरूकता का दृढ संकल्प लेना होगा जिससे हम बाल संरक्षण के
अधिकार का सपना साकार कर सकते हैं।
भारतीय
संविधान में बच्चों के प्रति अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता व्यक्त की है, संविधान
देश का मूल कानून है जिसके अंतर्गत मौलिक अधिकार तथा राज्य के लिए दिए निर्देश
सम्मिलित है। साथ ही अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य को बच्चों के लिए विशेष
प्रावधान बनाने, अनुच्छेद 21 (A) में
06-14 वर्ष कि आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्राविधान, अनुच्छेद 23 में किसी भी प्रकार के मानव
व्यापार विशेषकर बाल व्यापार पर प्रतिबन्ध व अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम आयु के
बच्चों को जोखिम भरे श्रम करने को प्रतिबन्धित किया गया है, संविधान में प्रतिपादित मैलिक अधिकारीं के
अनुसार यह सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा
उनके अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में न्याय हेतु न्यायालय जा सकते हैं।
साधारणतः बाल संरक्षण एवं बाल अधिकारों की पूर्ति का दायित्व राज्य सरकार पर है।
देश की
आजादी के 70 वर्ष बाद भी बच्चों में कुपोषण, स्वास्थ्य, हिंसा, शिक्षा, शोषण से
सुरक्षा आदि मामलों में इतने संसाधन होने के बावजूद भी दिन पर दिन आंकड़ों में
वृद्धि हो रही है, जो की जनसँख्या वृद्धि की तुलना में कहीं ज्यादा है, अगर देखा
जाये तो शहरी क्षेत्र में बाल अपराध के 30 प्रतिशत के आस पास ही मामले अभिभावक,
परिजन या स्वयं बच्चों द्वारा रिपोर्ट किये जा रहे है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह
प्रतिशत न के बराबर है, अगर मामले रिपोर्ट भी होते हैं तो सिर्फ छेड़-छाड़, बाल
विवाह व रेप के होते हैं, सोचने का विषय है क्या इसके अलावा अन्य किसी तरह के
अपराध इन क्षेत्रों में नहीं होते। शायद आज भी परम्परागत जीवन शैली, संस्कार,
रुढियों के चलते हम अन्य को अपराध में नहीं गिनते,
जरुरत है जागरूकता की बच्चों को अपना पराया नहीं बल्कि अच्छा और बुरा की पहचान
कराने की। महिला एवं बाल विकास
मंत्रालय की 2017 की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश में 53.22 फीसदी बच्चों को यौन शोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा, जिसमें
से 52.94 प्रतिशत लड़के व 47.06 प्रतिशत लड़कियां इन यौन उत्पीड़न की
घटनाओं का शिकार हुए।
बाल सुरक्षा दिन पर दिन एक चुनौती के रूप में उभर रहा है,
आधुनिक युग में सोशल मीडिया साइबर अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं जिसमे बच्चा शारीरिक
और मानसिक दोनों तरह से प्रताड़ित होता है, हाल ही ब्लू व्हेल गेम ने विश्व के कई
देशों में किशोरों की जान ले ली। साइबर अपराध में अधिकतर व्यस्क या उम्रदराज लोगों
के द्वारा चैटिंग, सन्देश के जरिये ब्लैकमेल व अपने जाल में फंसाया जा रहा है,
जिसका परिणाम यह है कि बच्चे इस कुचक्र में फंसकर अपना घर छोड़ने को विवश हो जाते
हैं।
अगर देश में बालश्रम की बात की जाये तो यहाँ बाल मजदूरी एक बड़ी
समस्या है। कहने को तो भारत में बच्चो को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन आज भी
इन्ही बच्चों से गुलामो की तरह काम लिया जाता है। किताब-कलम थामने की उम्र में आज
भी करोड़ो बच्चे घरों में,
कारखानों में और फैक्टरियों में गुलामो की ज़िन्दगी बिता रहे
है,
बाल मजदूरी, सफाई, खाना बनाने के अलावा बुजुर्गो की देखभाल कर
रहे है। गंभीर बात यह है की इन बच्चो का शारीरिक और मानसिक शोषण भी हो रहा है। जिस
उम्र में बच्चे सपनो की दुनिया बुनते है उसी उम्र में आज करोड़ो बच्चे दूसरों के
सपने पूरे करने में लगे हुए है। बाल मजदूरी खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कई
क़ानून बनाये गए लेकिन पुनर्वासन की रणनीति सुदृढ़ न होने से कानून सिर्फ नियोक्ता
के लिए बन गया। बालश्रम की समस्या भारत में नही दुनिया के कई देशो में एक विकट
समस्या के रूप में विराजमान है, जिसका समाधान बहुत
आवश्यक है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित होने के
बावजूद भी भारत में कई जगह आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप थोड़े से पैसो के लिए आने
बच्चो को ऐसे ठेकेदारो के हाथों बेच देते है जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलो, कोठियों तथा अन्य कारखानों पर काम पर लगा देते है।
बाल भिक्षावृत्ति की मामलों में मौसमी बृद्धि देखने को मिल
रही है ऐसा क्या कारण है कि सडकों पर अचानक बच्चों की बाढ़ सी आ जाती है, जो इस चकाचौंध
में आती जाती लग्जरी गाड़ियों के शीशे पर हाथ मारकर, तो कभी पेट की
तरफ इशारा करके अपनी परिस्थितियों का हवाला देकर भीख मांगते नजर आते हैं। भारत
जैसे विकासशील देश में गरीबी एवं आर्थिक असमानता अभी भी बड़ी समस्या है। कभी कभी 12-13 साल की बालिका
की गोद में एक दुधमुहा बच्चा थमा दिया जाता है, ताकि लोगों की संवेदना पैदा हो और भीख में पैसे मिल जाएँ। कई सरकारी और गैर
सरकारी संगठन बाल भिक्षावृति को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास
इतने छिटपुट होते हैं कि कोई बदलाव नही आ पाता, प्रशासन और कानून भी इनके आगे बौना
साबित होता है कि दर्ज़न बच्चे जब मुक्त कराये जाते हैं उससे पहले सैकड़ों बच्चे
इसमें शामिल हो जाते हैं।
सरकार ने इस समस्या के निराकरण के लिये कई योजनाए चलायी
परन्तु कही न कहीं हमारे समाज को भी इस समस्या के लिए हल निकालना होगा।
हमें इस बच्चों की मदद एवं सहयोग के लिए कदम उठाना होगा
उन्हें क्षणिक नहीं बल्कि जीवनपर्यंत सुख देना होगा, उनको भिक्षा नहीं बल्कि
शिक्षा देनी होगी। बाल भिक्षावृत्ति जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए समाज की अहम
भूमिका होनी चाहिए। समाज के द्वारा भीख मांगने वाले बच्चों को भीख नहीं देनी चाहिए
क्योकि वह उनके लिए भिक्षा नहीं बल्कि जहर का काम करती है। साथ ही सामाजिक
भागीदारी की बदौलत सरकार पर बाल भिक्षावृत्ति को रोकने व उनको उचित सुविधा देने के
लिए दबाव डाला जा सकता है
परन्तु उसके लिए समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी एंव सहयोग
देना होगा जिम्मेदारी समझनी होगी।
बाल शोषण दूर करने के लिए राजनैतिक व सामाजिक इच्छाशक्ति की सख्त जरूरत है।
इसी से जुड़ी हुई दूसरी चुनौतियां जैसे अच्छे कानून का अभाव, उन्हें सही से लागू न करा पाना, शिक्षा के प्रति जिम्मेदारी का अभाव हैं। बच्चों के
अधिकारों के संरक्षण व सुरक्षा की जिम्मेदारी हर स्तर पर सक्रिय रूप से निभानी
होगी जिसके लिए यूरी ब्रोनफ्रेनब्रेनर का संरक्षण तंत्र सिद्धान्त वर्तमान
में लाभकारी साबित हो रहा है जो सूक्ष्मतन्त्र, मध्यतंत्र, दीर्घतन्त्र, महातंत्र
का विभाजन है जो कि यह दर्शाता है कि जब पर्यावरणीय सुरक्षा तन्त्र विफल होता है
तो बच्चे असुरक्षित हो जाते हैं और उनके संरक्षण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
©अजीत कुमार