Thursday, 21 February 2019

लोकतन्त्र के प्रहरी युवा मतदाता


अजीत कुमार

देश जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक सवाल यह है कि देश कौन बनाता है? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थी, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक... आखिर कौन? शायद यह सब मिलकर देश बनाते होंगे.... लेकिन फिर भी एक और प्रश्न यह है कि इनमे से सर्वाधिक भागीदारी है किसकी? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसका जिक्र तक नहीं हुआ...... बात हो रही है युवाओं की.... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी है। लोकतंत्र के निर्माता और भाग्य विधाता यह युवा वर्ग ही है, इसलिए जहाँ एक तरफ भारत के लिए ख़ुशी की बात है कि हमारी जनसँख्या का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा युवाओं का है जो वर्ग सामाजिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है।
लोकतन्त्र जनता का प्रतिनिधि तन्त्र है, इसमें समस्त जन-समुदाय की सदभावना और सद्विचार प्रकट होते हैं। भारतीय लोकतन्त्र जनता की सेवा, जनता की सुरक्षा एवं जनता के अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में खामिया उत्पन्न होना, हम सबकी देन है बहुत से लोग भारतीय लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को हेय दृष्टि से देखते हैं, इसके लिए हर मतदाता को आगे आकर अपने कर्तव्य को निभाना होगा, दायित्व को पूरा करना होगा तब हम एक स्वस्थ लोकतन्त्र का निर्माण कर पाएंगे।
            आज पूरे देश की निगाहें युवाओं पर टिकी हैं क्योकि लोकतान्त्रिक निर्वाचन प्रक्रिया का मुख्य हिस्सा युवा मतदाता हैं। मतदान न करने से राष्ट्र सेवा के एक बहुत बड़े दायित्व से मुंह मोड़ लेना है, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है लेकिन हमारे सामने चुनौती यह है कि इसे और व्यापक कैसे बनाया जाये, इसके लिए मतदाताओं को आगे आकर बिना किसी भेद-भाव, निष्पक्ष, जातिपात रहित नैतिक मतदान करने की जरुरत है। मतदाताओं को शिक्षित करने एवं जागरूकता फ़ैलाने की जरुरत है, केवल चुनिन्दा लोगों की उपलब्धियों से ही भारत महान नहीं बनने वाला, महान तभी बनेगा जब बड़ी संख्या में लोग अपने जीवन में जिम्मेदारी के प्रति गम्भीर होंगे और अपने मताधिकार का सही प्रयोग करेंगे।
            प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने लोकतन्त्र को सुदृढ़ एवं स्वस्थ बनाने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करे। किसी देश की वास्तविक प्रगति तब तक नहीं हो सकती जब तक उस राष्ट्र के युवा चरित्रवान, ईमानदार, राष्ट्रभक्त और कर्तव्यनिष्ठ न हों| युवा मतदाता लोकतन्त्र के लिये रीढ़ की हड्डी के सामान हैं जब युवा आगे आयेंगे तो देश का विकास होगा, युवाओं की ताकत और समझदारी के द्वारा ही लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। युवा वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है सामान्य शब्दों में कहें तो युवा मतदाता ही वह संसाधन है जिसके बल पर राष्ट्र का गौरव है जो लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं। युवा मतदाता लोकतन्त्र के बसन्त हैं क्योकि युवा खोज और सपनों के द्वारा लोकतन्त्र को समृद्धि प्रदान कर सकता है हर किसी की नजर इन युवाओं पर टिकी होती है, युवा शक्ति के बल पर कोई भी कार्य सम्भव हो सकता है अगर हमें देश को विकास के रास्ते पर ले जाना है तो युवा मतदाताओं का योगदान जरूरी है। युवा स्वयं को जागरूक करके अपने समाज के लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करके, समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में एक प्रशिक्षक के सामान हैं।
            वर्तमान में भारत के युवाओं की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में भारत इस समय सबसे युवा देश है, यहाँ 35.6 करोड़ आबादी युवा है जबकि युवाओं की आबादी में दूसरे स्थान पर चीन 26.9 करोड़ युवाओं के साथ है। रिपोर्ट के अनुसार चीन की कुल आबादी से भारत की जनसँख्या कम होने के बावजूद भी भारत में सबसे ज्यादा युवा है भारत में 28 प्रतिशत आबादी की आयु 10 वर्ष से 24 वर्ष के बीच है। संयुक्त राष्ट्र जनसँख्या कोष (यूएनएफपीए) की विश्व जनसँख्या रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में सबसे ज्यादा युवाओं को संख्या है। इस युवा शक्ति में शिक्षा, स्वास्थ्य का निवेश करके अर्थव्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सकता है। युवाओं को उनके अधिकार दिए जाने भी जरूरी हैं क्योकि ये अपना भविष्य पाने में तभी सक्षम होंगे जब उनके पास कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और जीवन में बेहतर विकल्प मौजूद होंगे। आज के समय में दुनिया में 1.8 अरब युवा है जिनके पास दुनिया बदलने का उत्तम अवसर है। दुनिया के पास पहले इतने युवा कभी नहीं थे।
            सच कहें तो युवा मतदाता ही सही दिशा में लोकतंत्र रूपी गाड़ी को ले जाने वाले चालक है। जिस तरफ युवाओं का रुझान होता है उसी तरफ प्रगति होती है। हर एक मतदाता लोकतंत्र का प्रहरी होता है। हमारी वह पीढ़ी जिसे हम अपना भाई-बन्धु, गुरु, सलाहकार आदि नामों से संबोधित करते है इनकी भूमिका अविछिन्न है और इनकी प्रेरणा समाज को प्रेरित एवं उत्प्रेरित करती है। भारत निर्वाचन आयोग की लोकतांत्रिक सरंचना की मर्यादा बनाये रखने एंव एक स्वास्थ्य लोकतंत्र में प्रत्येक मतदाता को बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग, सम्प्रदाय, भाषा तथा सामाजिक आर्थिक दृष्टि से मतभेद किये बिना समान भागदारी का अधिकारी है मजबूत और परिपक्व लोकतंत्र के लिये महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदाता अपने अधिकारों और कर्तव्य के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूक हो।
          विश्व में जितने भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं उसमें सभी में युवाओं के लगन और बलिदान का अतुलनीय योगदान रहा है। शायद इसलिए कहा जाता है- जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। हमारी युवा शक्ति देश की तक़दीर और तस्वीर बदलने का जज्बा रखती है, एक नया आइना दिखाने की क्षमता रखती है। अनुभवी लोगो का मार्गदर्शन हमारी युवा शक्ति को अपनी सकारात्मक ऊर्जा राष्ट्रहित में लगाने को प्रेरित करता है। समय का चक्र कभी थमता नहीं और उसी के अनुरूप हमेशा परिवर्तन भी होते रहते है क्योकि युवा हमेशा प्रगति एवं बदलाव की ओर सक्रिय रहते हैं। एक सुदृढ़, संगठित और उन्नत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए भारत को पुनः विश्व-गुरु की भूमिका में स्थापित करने के लिए युवाओं को अपना सब कुछ राष्ट्र को समर्पित करना होगा, आने वाले समय में राष्ट्र एवं लोकतंत्र में युवाओं का प्रतिनिधित्व रहना भी तय है। हमें अपनी सोंच और विचारों से उन नए अवसरों की तलाश करनी होगी जो न केवल स्वयं को आगे बढाने में बल्कि दूसरों को आगे बढ़ने मददगार साबित होगी। इस कार्य के साथ-साथ युवाओं को अपनी नैतिकता का ध्यान रखना होगा।
समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना होगा कि राष्ट्र के सन्मुख आज जितनी भी चुनौतियां है हम उनका डटकर सामना करेंगे। युवाओं को अपनी भारतीय संस्कृति का ध्यान रखते हुए समाज के ज्वलन्त मुद्दों पर गहन चिंतन के साथ प्रतिक्रिया करने की जरुरत है ताकि हम अपने देश, समाज एवं राष्ट्र को नये रूप में देख सकें। सर जेम्स के शब्दों में “युवा ऐसा पक्षी है जो टूटे हुए अंडे और बेबसी से स्वन्त्रता और आशा के खुले असमान में पंख फैला रहा है क्योकि युवा खोज और सपनों के द्वारा अपने देश को समृद्धि प्रदान कर सकता है” किसी भी कार्य में सफलता की उम्मीदे उस समय और फलीभूत होने लगती है, जब उसमे योग्य व्यक्तियों के अनुभव का समावेश कर लिया जाए। स्वन्त्रता के पश्चात् देश और सामाज का नेतृत्व करने वालों का दायित्व था कि लोगो को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक, शिक्षितऔर प्रशिक्षित करना लेकिन नेतृत्वकर्ताओ  ने हमें इससे वंचित कर दिया।
सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक़उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशनसिंह आदि क्रान्तिकारी जो देश की स्वतंत्रता के नाम पर मर मिटे, इन्होंने देशभक्ति को कभी अपना पेशा नहीं बनाया, ऐसे क्रांतिकारी जो हमारे आदर्श है हमें उनके चरित्र एवं आचरण की श्रेष्ठता को अपने कर्तव्यों के माध्यम से जीवन में अपनाना होगा। वर्तमान स्थिति में देश को आवश्यकता है हमारे कठोर परिश्रम व कर्तव्यपालन की जिसके द्वारा हम समर्थ स्वराज के निर्माण में सहयोग कर सकें क्योकि युवाओं का हुजूम अपने ताकत एवं बल के द्वारा राष्ट्र और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूरकर सफल राष्ट्र के निर्माण की संज्ञा दे सकते हैं।
इसी का मुख्य कारण है कि आज भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम, प्रेरक-भाषण, देश-भक्ति के विचार कहीं गली मुहल्लों में नहीं बल्कि कालेजों एवं विश्वविद्यालयों में दिए जाते हैं जहाँ पर युवाओं को फ़ौज होती है और उसमे नए विचारों को अमल करने की उत्सुकता होती है। यही कारण है कि अन्ना-हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अनसन में युवा वर्ग अपने कालेजों को छोड़कर अन्ना जी के समर्थन में सड़क पर आ गये, वही 16 वीं लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र के निर्माण में अधिकतर युवाओं ने मतदान करके अपनी भागीदारी एवं सहभागिता का जिम्मा सम्भाला। भारत देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है कि देश के युवा आगे आकर आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी जिम्मेदारी को समझ कर बेहतर राष्ट्र के लिए अपने मत का प्रयोग करें, साथ ही प्रथम बार वोटर बने मतदाता अपने मत का प्रयोग जनतंत्र में भागीदारी के लिए करे।