Monday, 22 October 2018

बालश्रम में झुलसता बचपन

        भारत देश के बारे में कहा जाए तो यहाँ बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। कहने को तो भारत में बच्चो को भगवन का रूप माना जाता है लेकिन आज भी इन्ही बच्चों से गुलामो की तरह काम लिया जाता है किताब-कलम थामने की उम्र में आज भी करोड़ो बच्चे घरों में, कारखानों में और फैक्टरियों में गुलामो की ज़िन्दगी बिता रहे है; बाल मजदूरी, सफाई, खाना बनाने के अलावा, बुजुर्गो की देखभाल कर रहे है गंभीर बात यह है की इन बच्चो का शारीरिक और मानसिक शोषण भी होता है परिवार के बीच रहते हुए भी इनके साथ परिवार के सदस्य की तरह बर्ताव नहीं किया जाता है कैसा हो अगर कोई आपके सपने छीन ले? इस बात को सुनकर की शायद आपको डर लगता होगा लेकिन अपने परिवार से कोसो दूर ये बच्चे बड़े-बड़े घरों में, फैक्टरियों में, कारखानों में, दुकानो में बाल मजदूरी कर रहे है; बाल मजदूरी कर रहे इन बच्चों को वेतन नहीं दिया जाता और साथ ही शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है जिस उम्र में बच्चे सपनो की दुनिया बुनते है उसी उम्र में आज करोड़ो बच्चे दूसरों के सपने पूरे करने में लगे हुए है बाल मजदूरी खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कई क़ानून बनाये गए लेकिन होता कुछ भी नहीं इतनी जागरूकता के बाद भी बच्चे आज भी बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर है.......
‌        बालश्रम की समस्या भारत में नही दुनिया के कई देशो में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है, जिसका समाधान बहुत आवश्यक है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ इस अधिनियम के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चो की नियुक्ति निषेध है वर्तमान में भारत में कई जगहों अर आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप थोड़े से पैसो के लिए आने बच्चो को ऐसे ठेकेदारो के हाथों बेच देते है जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलो, कोठियों तथा अन्य कारखानों पर काम पर लगा देते है बच्चो को बाल मजदूरी से की समस्या से निकालने के लिए कई क़ानून बनाये गए है आज कई संगठन बच्चो को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर उन्हें दूसरे बच्चो की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिला रहे है हाल ही में चाइल्डलाइन लखनऊ द्वारा बालिका सौम्या (बदला हुआ नाम) उम्र 12 वर्ष को बालश्रम से मुक्त कराकर बाल कल्याण समिति के माध्यम से स्थानीय बालगृह में आश्रय दिलाया गया जहाँ उसकी  काउंसिलिंग करायी गयी। काउंसिलिंग के बाद पता चला कि वह बालिका कोसो दूर अपने चाचा द्वारा छोटे से गाँव से लखनऊ सुनहरे सपने दिखाकर, पढ़ने-लिखने, बड़े घर रहने का झांसा देकर लाया गया। वहां उसे ठेकेदारो द्वारा बेच दिया जाता है और उससे घर में बाल मजदूरी, साफ़-सफाई कराई जाती थी और शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया जाता था। परिवार में रहते हुए भी उसे शिक्षा के नाम पर मजदूरी, कपड़ो के नाम पर उतरन, रोटी के नाम पर झूठन और वेतन भी नही दिया जाता था। क्या हो गया है हमारे समाज को? सरकार के प्रयासो के साथ-साथ बालश्रम को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज और आम नागरिको को आगे आना होगा और यह समझना होगा जो शिक्षा वह अपने बच्चो को दिला रहे है वह दूसरे बच्चो का भी अधिकार है जो बाल मजदूरी कर रहे है भले ही हम बच्चों के अधिकार और विकास के लिए कितने ही दावे क्यों करे, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है....
 साक्षी निगम- इंटर्न चाइल्डलाइन लखनऊ      

The Right To Education- A Critical Analysis


Friday, 19 October 2018

बाल भिक्षावृत्ति रोकने को साथ आये समाज

             

हमारा देश तरक्की कर रहा है आगे बढ़ रहा है, नई नई क्रांतियाँ हो रही हैं, ऐसा दिन में कई बार कहने और सुनने में आ जाता है लेकिन जब हम हकीकत के धरातल पर आते ही हमे दिखाई देता है सडकों पर चकाचौंध और आती जाती लग्जरी गाड़ियों के शीशे पर हाथ मारकर, कभी सिर पर हाथ रखकर अपनी बदकिस्मती का रोना रोने वाले, तो कभी पेट की तरफ इशारा करके अपनी परिस्थितियों का हवाला देने वाले छोटे छोटे हाथों को फैलाकर भीख मांगते बच्चे। भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी एवं आर्थिक असमानता अभी भी बड़ी समस्या है। कभी कभी 8-9 साल के बच्चे को गोद में एक दुधमुहा बच्चा थमा दिया जाता है, ताकि लोगों की संवेदना पैदा हो और भीख में पैसे मिल जाएँ। इन्हें दयनीय अवस्था में दिखाने के लिए पेट भर खाना नही दिया जाता, सोने नही दिया जाता, कुछ ड्रग्स भी दिए जाते हैं, छोटे बच्चों की आँखों में विक्स मल दी जाती है ताकि बच्चे पर बेहोशी छाई रहे, बात सिर्फ यहीं तक नहीं है, कुछ बच्चे जो भागने का प्रयास कर चुके होते हैं, या जिनसे ज्यादा भीख मंगवानी होती है उनके अंग भंग तक कर दिए जाते हैं। जैसे पैर काट दिए जाते हैं, जुबां काट दी जाती है। ये इतना भयानक होता है कि बच्चे के मन में भारी भय और आतंक पसर जाता है, जिससे न वो कभी भागने का प्रयास करते हैं और न ही किसी से कोई मदद मांगते हैं, ऐसे बच्चे जिनका पूरा बचपन सडक किनारे भीख मांगने में गुजर जाता है हम ऐसे बच्चों की बात कर रहे है को नवाबों के शहर में तो हैं लेकिन बेबस, सड़क पर मजबूर...........

            बच्चों से भीख मंगवाना ज्यादातर गिरोह में किया जाता है, यह मुख्य रूप से स्मारक, पर्यटक स्थल, माल, धार्मिक स्थल और बाजार, यातायात चौराहे आदि पर होता है। सूत्रों की माने तो बच्चों को भीख मांगने के लिये किराये पर भी लिया जाता है। कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन बाल भिक्षावृति को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास इतने छिटपुट होते हैं कि कोई बदलाव नही आ पाता, प्रशासन और कानून का रवैया इसके प्रति इतना ढीला है कि दर्ज़न बच्चे जब मुक्त कराये जाते हैं उससे पहले सैकड़ों बच्चे इसमें शामिल हो जाते हैं। सरकार ने इस समस्या के निराकरण के लिये कई योजनाए चलायी परन्तु कही न कहीं हमारे समाज को भी इस समस्या के लिए हल निकालना होगा। हमें उन बच्चों (जो भीख मांगने के लिए मजबूर है) की मदद एंव सहयोग के लिए कदम उठाना होगा, उन्हें भिक्षा नहीं बल्कि शिक्षा देनी होगी जो क्षणिक नहीं बल्कि जीवनपर्यंत सुख होगा। जिस प्रकार हाल ही में चाइल्डलाइन लखनऊ द्वारा 15 बच्चों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए प्रयास किया जिसके अन्तर्गत लखनऊ पालिटेकनिक, वेव मॉल व मा. उच्च न्यायालय के पास कुछ बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराया गया। वहाँ से उन बच्चों को बालगृह में दाखिल कराया गया। जहाँ पर उनकी बार-बार काउंसलिग कराई गई तथा उन बच्चों को ऐसा महौल दिया गया जिससे उनको समाज में सोचने का अलग नजारिया मिला, अतः उनको अच्छे एंव बुरे में अन्तर पता लगने लगा। बार-बार कांउसलिंग होने पर उन्होने उस दुनिया से सम्बन्धित कई बातों को बताया। जिसके बाद उन बच्चों के पुननिर्वास के लिये कार्य योजना बनायी गयी। उसके बाद उन बच्चों से सम्बन्धित गांवो के प्रधानों को बुलाया गया एंव उनको उन बच्चों की जिम्मेंदारी देते हुए उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए बाल कल्याण समिति द्वारा कहा गया। प्रधान द्वारा इस बात का आश्वासन दिया गया कि वह उन बच्चों के भविष्य को बेहतर करने एंव उनकी शिक्षा को जारी रखने में सहयोग देंगें। बाल भिक्षावृत्ति जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए समाज की अहम भूमिका होनी चाहिए। समाज के द्वारा भीख मांगने वाले बच्चों को भीख नहीं देनी चाहिए क्योकि वह उनके लिए भिक्षा नहीं बल्कि जहर का कम करती है। अतः भिक्षा न देते हुए शिक्षा दें। साथ ही सामाजिक भागीदारी की बदौलत सरकार पर बालभिक्षावृत्ति को रोकने व उनको उचित सुविधा देने के लिए दबाव डाला जा सकता है परन्तु उसके लिए समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी एंव सहयोग देना होगा, जिम्मेदारी समझनी होगी। @POOJA MISHRA