भारत
देश के बारे में कहा जाए तो यहाँ बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। कहने को तो भारत में बच्चो को भगवन का रूप माना जाता है लेकिन आज भी इन्ही बच्चों से गुलामो की तरह काम लिया जाता है। किताब-कलम थामने की उम्र में आज भी करोड़ो बच्चे घरों में, कारखानों में और फैक्टरियों में गुलामो की ज़िन्दगी बिता रहे है; बाल मजदूरी, सफाई, खाना बनाने के अलावा, बुजुर्गो
की देखभाल कर रहे है । गंभीर
बात यह है की इन बच्चो का शारीरिक और मानसिक शोषण भी होता है । परिवार
के बीच रहते हुए भी इनके साथ परिवार के सदस्य की तरह बर्ताव नहीं किया जाता है। कैसा
हो अगर कोई आपके सपने छीन ले? इस बात को सुनकर की शायद आपको डर लगता होगा। लेकिन
अपने परिवार से कोसो दूर ये बच्चे बड़े-बड़े घरों में, फैक्टरियों में, कारखानों में, दुकानो में बाल मजदूरी कर रहे है; बाल मजदूरी कर रहे इन बच्चों को वेतन नहीं दिया जाता और साथ ही शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। जिस
उम्र में बच्चे सपनो की दुनिया बुनते है उसी उम्र में आज करोड़ो बच्चे दूसरों के सपने पूरे करने में लगे हुए है। बाल
मजदूरी खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कई क़ानून बनाये गए लेकिन होता कुछ भी नहीं । इतनी
जागरूकता के बाद भी बच्चे आज भी बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर है.......
बालश्रम की समस्या भारत में नही दुनिया के कई देशो में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है, जिसका समाधान बहुत आवश्यक है। भारत में 1986 में
बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ । इस
अधिनियम के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चो की नियुक्ति निषेध है। वर्तमान
में भारत में कई जगहों अर आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप थोड़े से पैसो के लिए आने बच्चो को ऐसे ठेकेदारो के हाथों बेच देते है जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलो, कोठियों
तथा अन्य कारखानों पर काम पर लगा देते है। बच्चो
को बाल मजदूरी से की समस्या से निकालने के लिए कई क़ानून बनाये गए है । आज
कई संगठन बच्चो को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर उन्हें दूसरे बच्चो की तरह शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिला रहे है । हाल
ही में चाइल्डलाइन लखनऊ द्वारा बालिका सौम्या (बदला
हुआ नाम) उम्र 12 वर्ष को बालश्रम से मुक्त कराकर बाल कल्याण समिति के माध्यम से स्थानीय बालगृह में आश्रय दिलाया गया । जहाँ
उसकी काउंसिलिंग
करायी गयी। काउंसिलिंग के बाद पता चला कि वह बालिका कोसो दूर अपने चाचा द्वारा छोटे से गाँव से लखनऊ सुनहरे सपने दिखाकर, पढ़ने-लिखने, बड़े
घर रहने का झांसा देकर लाया गया। वहां उसे ठेकेदारो द्वारा बेच दिया जाता है और उससे घर में बाल मजदूरी, साफ़-सफाई कराई जाती थी और शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया जाता था। परिवार में रहते हुए भी उसे शिक्षा के नाम पर मजदूरी, कपड़ो
के नाम पर उतरन, रोटी
के नाम पर झूठन और वेतन भी नही दिया जाता था। क्या हो गया है हमारे समाज को? सरकार के प्रयासो के साथ-साथ बालश्रम को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज और आम नागरिको को आगे आना होगा और यह समझना होगा जो शिक्षा वह अपने बच्चो को दिला रहे है वह दूसरे बच्चो का भी अधिकार है जो बाल मजदूरी कर रहे है । भले
ही हम बच्चों के अधिकार और विकास के लिए कितने ही दावे क्यों न करे, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है....
साक्षी निगम- इंटर्न चाइल्डलाइन लखनऊ