Friday, 19 October 2018
बाल भिक्षावृत्ति रोकने को साथ आये समाज
हमारा देश तरक्की कर रहा है आगे बढ़ रहा है, नई
नई क्रांतियाँ हो रही हैं, ऐसा दिन में कई बार कहने और सुनने में आ जाता है लेकिन जब
हम हकीकत के धरातल पर आते ही हमे दिखाई देता है सडकों पर चकाचौंध और आती जाती लग्जरी गाड़ियों के शीशे पर हाथ मारकर, कभी सिर
पर हाथ रखकर अपनी बदकिस्मती का रोना रोने वाले, तो कभी पेट की तरफ इशारा करके अपनी परिस्थितियों का हवाला देने वाले छोटे
छोटे हाथों को फैलाकर भीख मांगते बच्चे। भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी एवं
आर्थिक असमानता अभी भी बड़ी समस्या है। कभी कभी 8-9 साल के
बच्चे को गोद में एक दुधमुहा बच्चा थमा दिया जाता है, ताकि
लोगों की संवेदना पैदा हो और भीख में पैसे मिल जाएँ। इन्हें दयनीय अवस्था में
दिखाने के लिए पेट भर खाना नही दिया जाता, सोने नही दिया
जाता, कुछ ड्रग्स भी दिए जाते हैं, छोटे
बच्चों की आँखों में विक्स मल दी जाती है ताकि बच्चे पर बेहोशी छाई रहे, बात सिर्फ
यहीं तक नहीं है, कुछ बच्चे जो भागने का प्रयास कर चुके होते हैं, या जिनसे ज्यादा भीख मंगवानी होती है उनके अंग भंग तक कर दिए जाते हैं।
जैसे पैर काट दिए जाते हैं, जुबां काट दी जाती है। ये इतना
भयानक होता है कि बच्चे के मन में भारी भय और आतंक पसर जाता है, जिससे न वो कभी भागने का प्रयास करते हैं और न ही किसी से कोई मदद मांगते
हैं, ऐसे बच्चे जिनका पूरा बचपन सडक किनारे भीख मांगने में गुजर जाता है हम ऐसे
बच्चों की बात कर रहे है को नवाबों के शहर में तो हैं लेकिन बेबस, सड़क पर
मजबूर...........
बच्चों
से भीख मंगवाना ज्यादातर गिरोह में किया जाता है, यह मुख्य रूप से स्मारक, पर्यटक
स्थल, माल, धार्मिक स्थल और बाजार, यातायात चौराहे आदि पर होता है। सूत्रों की
माने तो बच्चों को भीख मांगने के लिये किराये पर भी लिया जाता है। कई सरकारी और
गैर सरकारी संगठन बाल भिक्षावृति को रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन ये
प्रयास इतने छिटपुट होते हैं कि कोई बदलाव नही आ पाता, प्रशासन और कानून का रवैया
इसके प्रति इतना ढीला है कि दर्ज़न बच्चे जब मुक्त कराये जाते हैं उससे पहले सैकड़ों
बच्चे इसमें शामिल हो जाते हैं। सरकार ने इस समस्या के निराकरण के लिये कई योजनाए
चलायी परन्तु कही न कहीं हमारे समाज को भी इस समस्या के लिए हल निकालना
होगा। हमें उन बच्चों (जो भीख मांगने के लिए मजबूर है) की मदद एंव सहयोग के लिए
कदम उठाना होगा, उन्हें भिक्षा नहीं बल्कि शिक्षा देनी होगी जो क्षणिक नहीं बल्कि
जीवनपर्यंत सुख होगा। जिस प्रकार हाल ही में चाइल्डलाइन लखनऊ द्वारा 15 बच्चों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए प्रयास किया जिसके
अन्तर्गत लखनऊ पालिटेकनिक, वेव मॉल व मा. उच्च न्यायालय के पास कुछ बच्चों को
भिक्षावृत्ति से मुक्त कराया गया। वहाँ से उन बच्चों को बालगृह में दाखिल कराया
गया। जहाँ पर उनकी बार-बार काउंसलिग कराई गई तथा उन बच्चों को ऐसा महौल दिया गया
जिससे उनको समाज में सोचने का अलग नजारिया मिला, अतः उनको अच्छे एंव बुरे में
अन्तर पता लगने लगा। बार-बार कांउसलिंग होने पर उन्होने उस दुनिया से सम्बन्धित कई
बातों को बताया। जिसके बाद उन बच्चों के पुननिर्वास के लिये कार्य योजना बनायी
गयी। उसके बाद उन बच्चों से सम्बन्धित गांवो के प्रधानों को बुलाया गया एंव उनको
उन बच्चों की जिम्मेंदारी देते हुए उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए बाल कल्याण
समिति द्वारा कहा गया। प्रधान द्वारा इस बात का आश्वासन दिया गया कि वह उन बच्चों
के भविष्य को बेहतर करने एंव उनकी शिक्षा को जारी रखने में सहयोग देंगें। बाल भिक्षावृत्ति
जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए समाज की अहम भूमिका होनी चाहिए। समाज के द्वारा भीख
मांगने वाले बच्चों को भीख नहीं देनी चाहिए क्योकि वह उनके लिए भिक्षा नहीं बल्कि
जहर का कम करती है। अतः भिक्षा न देते हुए शिक्षा दें। साथ ही सामाजिक भागीदारी की
बदौलत सरकार पर बालभिक्षावृत्ति को रोकने व उनको उचित सुविधा देने के लिए दबाव
डाला जा सकता है परन्तु उसके लिए समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी एंव सहयोग देना
होगा, जिम्मेदारी समझनी होगी। @POOJA MISHRA
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पूजा जी आपकी हिंदी बिल्कुल भी अच्छी नहीं है..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसमय के साथ साथ बदलव हुए है किन्तु पर्याप्त नही और की आवश्यकता है
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