Monday, 17 November 2014

देश की आजादी में भारतीय पत्रकारिता



∙ अजीत कुमार
     भारत में पत्रकारिता प्रारम्भ विलियम बोल्ट्स ने किया, 1768 के सितम्बर महीने में बोल्ट्स ने प्रकाशन और मुद्रण के कार्य में रूचि रखने और जानकारी रखने वाले वालों को समाचार-पत्र प्रकाशित करने के लिए आमन्त्रित किया था| भारत में आधुनिक पत्रकारिता का प्रारम्भ अंगेजों के द्वारा शुरू हुई, सर्वप्रथम 29 जनवरी 1780 को जेम्स अगस्त हिकी ने “बंगाल गजेट एंड कलकत्ता गनरल एडवरटाईजर” नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया, इस दिन से भारत में पत्रकारिता की विधिपूर्वक शुरुआत हुई इस पत्र को हिकीज गजेट भी कहते हैं इसके सम्बन्ध में हिकी ने कहा भी है- “यह राजनीतिक और व्यवसायिक पत्र खुला तो सबके लिए है परन्तु प्रभावित किसी से नहीं है| ब्रिटिश सरकार में इस पत्र की काफी आलोचना हुई जिसके उपरांत तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने मार्च 1782 में इस पत्र को बन्द करवा दिया| अपने अल्प जीवन काल में ही इस समाचार-पत्र ने सरकारी दमन के विरुद्ध जो साहस दिखलाया जिससे वर्तमान समय में भारतीय पत्रकारिता का आदर्श बन गया|
     भारत में पत्रकारिता का इतिहास, मुद्रण के इतिहास से कही ज्यादा पुराना है सर्वप्रथम कुछ समाचार-पत्र हस्तलिखित भी प्रकाशित किये गये| पत्रकारिता के विकास के लिए मुद्रण एक अनिवार्य तत्व है, वर्तमान मुद्रण का इतिहास लगभग 500 वर्ष से चला आ रहा है| देश और समाज की धड़कन समाचार-पत्र, बेजुबां को बोलने और बहरे को सुनने की क्षमता प्रदान करता है, पत्रकारिता ने इसे जनस्वर देकर सर्व-सुलभ बनाया जो जनमानस की अभिव्यक्ति है जिसमे समाज का हर व्यक्ति अपने आपको बराबर के स्थान पर पाता है भारतीय पत्रकारिता के तत्व वैदिक-काल तथा रामायण, महाभारत आदि में बीजरूप में निहित होते हैं| विभाजन से पूर्व बांग्लादेश, ढाका और पाकिस्तान में लाहौर हिंदी पत्रकारिता के गढ़ रहे, ढाका में हिंदी पत्रकारिता आज भी संतोषजनक है| कानपुर निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ल आजीविका की तलाश में कलकत्ता गये जहाँ उनके मन में कलकत्ता प्रवास के दौरान यह विचार आया कि हिन्दुस्तानियों के हित एवं उनमे नवचेतना का संचार करने के लिए एक हिंदी भाषा का पत्र निकाला जाये, 30 मई 1826 को कलकत्ता से ‘उदन्तमार्तण्ड’ नामक हिंदी का साप्ताहिक-पत्र प्रारम्भ किया|
     हेराल्ड बेंजामिन के अनुसार, पत्रकारिता शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली माध्यम है, शिक्षा के विकास के बिना पत्रकारिता की प्रगति की कल्पना करना मुश्किल है| अंगेजी शासन काल में भारतीय समाज को सामाजिक तौर पर जागृत करने में इन समाचार-पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है| बाल-विवाह, विधवा-विवाह के साथ ही पर्दा प्रथा, स्त्री-शिक्षा आदि बिन्दुओं पर फोकस करना इन पत्र-पत्रिकाओं का मुख्य उद्देश्य था|
     स्वतंत्रता आन्दोलन के समय हिन्दी पत्रकारिता एक मिशन थी, इसका लक्ष्य राष्ट्रीय अस्मिता, एकता, अखंडता, स्वतंत्रता एवं देशभक्ति के प्रति भारतीय जनमानस को प्रेरित करना था, इस अवधि में अधिकांश पत्रकार, स्वतंत्रता-संग्राम से जुड़े हुए थे| जनमत संरचना, शिक्षा, जागरूकता की दिशा में पत्रकारों ने जिस निष्ठा से आजादी की लड़ाई के समय कार्य किया, उसे निष्ठा भाव कहे या स्वन्त्र भारत के प्रति समर्पण दोनों ही कम हैं| भारतीय पत्रकारिता सत्ता और जनता के मध्य एक सशक्त कड़ी के रूप में कार्य करते हुए नित नये आयाम स्थापित किये अगर कहा जाये कि स्वतंत्रता के बाद हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का बहुआयामी विकास हुआ ततो कतई गलत नहीं है| स्वाधीनता के बाद भारत में दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रिमासिक, छमाही एवं वार्षिक आवृत्ति वाले पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन बहुत बड़ी संख्या में हुआ है, सामान्यतः समाचार-पत्रों का स्वरुप दैनिक या साप्ताहिक था|
     भारतवर्ष में हिंदी पत्रकारिता स्वतंत्रता- आन्दोलन की ध्वजवाहिका रही है, जिस तरह आँखों के लिए प्रकाश महत्वपूर्ण है उसी प्रकार स्वतंत्रता के लिए पत्रकारिता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की| एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में स्वतंत्रता का मार्ग दिखलाकर पत्रों ने पाठकों को स्फूर्ति दी| स्वतंत्रता के महायज्ञ में हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से डाली गयी आहुति सतत स्मरणीय रहेगी| पत्रकारिता जन भावना की अभिव्यक्ति है, सदभावों की अभिव्यक्ति का यही साधन है| अकबर इलाहाबादी के शब्दों में पत्र- ‘खींचों न कमानों न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो|’
     देश की आजादी में महिला पत्रकारों एवं सहयोगियों की भूमिका सराहनीय है| इन्होंने सक्रिय योगदान देकर पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया| पर्दे और चहरदीवारी के अंदर रहने वाली स्त्रियों ने बाहर आकर अंग्रेजों से लोहा लिया, चांहे वह 1857 के विद्रोह में झाँसी की रानी हो या रानी चेनम्मा आदि स्त्रियों ने मैदान में फिरंगियों का सामना किया लेकिन इसके 90 वर्ष बाद तो हर स्त्री, युवती और बच्ची इस महासंग्राम में आगे आयी| चांहे वह सरोजिनी नायडू हो, कमला नेहरु, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि बहुत सी  स्त्रियों ने अपनी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जुड़ी और आन्दोलन में आगे आकर मोर्चा संभाला| सरोजनी नायडू जो भारत की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, लेखिका एवं गायिका थीं जिन्होंने देश की आजादी में सक्रिय रूप से भाग लिया, इन्होंने देश के क्रान्तिकारी वीरों को प्रभावशाली भाषणों एवं पत्रों के माध्यम से प्रभावित किया जिससे लोग आजादी की जंग में कूद पड़े|
       पत्रकारिता वास्तव में रोचक एवं चुनौतीपूर्ण मिशन है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भारतीय जनसंचार की क्रान्ति की सूचनाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील बना दिया है| वास्तव में समाचार और विचार को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन जन तक पहुँचाने की कला ही पत्रकारिता है| यह वह विद्या है जिसमे पत्रकारों के सभी प्रकार के कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है| परतंत्रता के दिनों में पत्रकारों ने अंग्रेजी सत्ता के फौलादी पंजों से मुकाबला किया, आर्थिक संकट से जूझकर पत्रकार बंधुओं ने कंटकाकीर्ण मार्ग को अपनाया| और अपने देश की स्वतंत्रता के लिए जान पर खेलकर आजादी के जोशपूर्ण लेख और कविताओं को पत्र के माध्यम से पहुँचाया|  
     गांधीजी एक सिद्ध हस्त पत्रकार थे, उन्होंने पत्रकारिता की वैचारिक क्रांति का एक सशक्त माध्यम स्वीकार किया| गांधीजी अनेक पत्र नवजीवन, हरिसेवक, हरिजन एवं यंग इंडिया आदि के संवाहक थे| गांधीजी के साथ प्यारेलाल, डा० जे०सी० कुमारप्पा, स्व० महादेव देसाई जैसे तत्वदर्शी पत्रकार उनके सहायक थे, जो हिंदी पत्रकारिता एवं देश के लिए प्राण उड़ेलते थे| गाँधी जी ने रौलेट एक्ट के विरोध में बिना रजिस्ट्रेशन के ही 7 अप्रैल 1919 को बम्बई से सत्याग्रह साप्ताहिक का प्रकाशन किया|
     स्वतन्त्रता आन्दोलन को तीव्र करने में कानपुर के प्रताप कार्यालय का योगदान अतुलनीय है, गणेश शंकर विद्यार्थी मात्र स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ही नहीं अपितु एक महान पत्रकार भी थे| वह नवयुवकों को आश्रय देकर, प्रशिक्षण देकर उन्हें राष्ट्रहित में सर्वस्व गवां देने के निमित्त जोश भरते थे भारत का कोई ऐसा आन्दोलन नहीं था जो विद्यार्थी जी से प्रेरणा न पाता हो शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह भी इनके कार्यालय में शरण पा चुके थे, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी, कृष्णदत्त पालीवाल, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, दशरथ प्रसाद की भांति भगत सिंह ने भी विद्यार्थी जी द्वारा प्रेरित होकर पत्रकारिता को अपनाया|
कर्मवीर, स्वदेश, प्रताप एवं सैनिक जैसी पत्रिकाओं ने मिलकर अंग्रेजो को नचाया जिसके सूत्रधार विद्यार्थी जी ही थे| इसमें सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजेंद्र सिंह लाहिड़ी, चंद्रशेखर  आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, आदि प्रमुख क्रान्तिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी, अम्बिका प्रसाद बाजपेई, लक्ष्मी नारायण और बनारसी दास चतुर्वेदी जैसे जुझारू पत्रकारों के प्रमुख लक्ष्य थे इसी समय मदन मोहन मालवीय ने 1907 में ‘अभ्युदय’ का प्रकाशन कर उत्तर प्रदेश में जन जाग्रति का बिगुल बजा दिया| कर्मवीर पत्र ने स्वतंत्रता के समय ओज एवं जोशपूर्ण शीर्षक ‘राष्ट्रीय ज्वाला जगाइये’ के साथ देश के युवाओं के ह्रदय में देश भक्ति का भाव भर दिया स्वतंत्रता संग्राम में 12 बार जेल की यात्रा करने वाले और 63 बार तलाशियाँ देने वाले माखन लाल चतुर्वेदी जी ने हिंदी पत्रकारिता को जुझारू व्यक्तित्व प्रदान किया | मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मात्रभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जायें वीर अनेक, स्वाधीनता हेतु प्राणदान की इस प्रबल पुकार को गुंजित करने वाले इस मनीषी से सम्बद्ध कर्मवीर का प्रकाशन कई बार स्थगित हुआ इसके उपरांत इस पत्र को बन्द होना पड़ा |
पराधीन भारत के नवयुवक स्वतंत्रता आन्दोलन में किसी भी तरह पीछे नहीं हटे, अहिंसक नेताओं की निति की असफलता से क्षुब्ध होकर हिंसात्मक निति का सहारा लिया| युवा वर्ग सशस्त्र क्रांति की तैयारी करने लगा| पत्रकार पुंगव पराड़कर जी महान क्रन्तिकारी थे, वे क्रन्तिकारियों के दल में शामिल होने के लिए कलकत्ता गए, 25 अगस्त 1930 को पराड़कर जी ने ‘रणभेरी’ में लिखा- “ऐसा कोई बड़ा शहर नहीं रह गया है, जहाँ से एक भी रणभेरी जैसा पर्चा न निकलता हो, अकेले बम्बई में इस समय ऐसे कई दर्जन पर्चे निकल रहे हैं, शुरू में वहां सिर्फ कांग्रेस बुलेटिन निकलती थी नये पर्चों के नाम जो समयानुकूल हैं जैसे- रिवोल्ट, रिवोल्यूशन, विप्लव, बाल्वो, फितूर, ग़दर, बग़ावत, बदमाश अंग्रेज सरकार आदि.... दमन से द्रोह बढ़ता है इसका यह अच्छा सबूत है, पर नौकरशाही के गोबर भरे गंदे दिमाग में इतनी समझ कहाँ, वह तो शासन का एक शस्त्र जानती है- बन्दूक |  
समाचार-पत्र का कर्तव्य है कि वह सत्य की खोज करे और निश्चित सिद्धांतों के आधार पर संसार के मामलों में उसका प्रयोग करें| उपन्यास सम्राट मुन्शी प्रेमचंद्र ने 1930 में हंस पत्रिका को प्रकाशित किया जिसमे सत्य और सच्चाई की छाप साफ चमकती थी जो कि उस समय देशभक्ति एवं क्रांतिकारियों के विचारों से सम्पन्न थी|
हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी हिंदी पत्रकारिता ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है, ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ को सार्थकता प्रदान करने के लिए हिंदी के साधनों ने अविस्मरणीय कार्य किया, प्रवासी भारतीयों की साधना सतत स्मरणीय है| राजर्षि टंडन कहा करते थे कि हिंदी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है, हिन्दी सरलता, बुद्धिमत्ता की दृष्टि से विदेशों की भाषाओँ में महत्वपूर्ण है |
भारतीय पत्रकारों ने विदेशों में हिंदी की धाक जमा रखी है, धीरे-धीरे हिंदी विश्व- मंच पर विश्व की तीसरी भाषा का स्थान ग्रहण करती जा रही है | भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही विदेशों में हिंदी पत्रकारिता के बीज फूट चुके थे, उदहारण के लिये मारीशस और फिजी आदि के नाम लिए जा सकते हैं इससे हमारी राष्ट्र भाषा को भी बल प्राप्त होगा जिससे विश्व पटल पर हिंदी पत्रकारिता भी सम्मानित होगी|
स्वतंत्रता आन्दोलन को गति देने के लिए जब भी हिंदी समाचार-पत्रों में उत्तेजक लेख और विचार प्रकाशित होते तब ब्रिटिश सरकार का दमन चक्र चलने लगता | इसी दमनचक्र और विभिन्न सरकारी कानूनों की आड़ में समाचारों को प्रतिबन्धित किया जाता था, जिसके परिणामस्वरुप इन पत्रों का प्रकाशन बन्द हो जाता | इन पत्रों से जुड़े पत्रकार प्रतिबंधित काल में भूमिगत होकर, हस्तलिखित या साइक्लोस्टाइल पत्र प्रकाशित किया करते थे| कशी नगरी में इस प्रकार के पत्रों का प्रकाशन 1930, 1942 और आजादी के बाद आपातकाल में 1975-79 में हुआ| इन पत्रों के माध्यम से सरकारी दमन का खुलकर विरोध किया जाता था इन भूमिगत प्रेस की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इनके प्रकाशन स्थल का पता सरकार को कभी नहीं लग पाया| भूमिगत प्रेस से सम्बन्ध रखने वाले मुख्य रूप से आचार्य नरेन्द्रदेव, बाबू राव, विष्णु पराड़कर आदि लोग थे जो देश में स्वतंत्रता आन्दोलन की ज्वाला प्रज्वलित करने में सक्रिय रहे|
परतंत्र भारत में पत्र प्रकाशन बड़ा ही असम्भव कार्य था जो अपना तन मन धन सर्वस्व अर्पित करने को तत्पर रहता था वही पत्रकारिता में प्रविष्ट हो सकता था | उन पत्रकारों के आदर्श तो महान थे किन्तु साधन सीमित थे, उन्हें न तो किसी प्रकार का सरकारी संरक्षण प्राप्त था और न ही किसी प्रकार का प्रोत्साहन, न ही समाज का सक्रिय सहयोग मिलता था | एक ही व्यक्ति, लेखक, रिपोर्टर, प्रूफरीडर, पैकर, प्रिन्टर आदि सभी भूमिकाओं का निर्वहन करता था उस समय लोग पत्र-पत्रिकाओं के मूल्य चुकाना भी नहीं चाहते थे चंदे के रूप में दी जाने वाली धनराशि की प्राप्ति न होने पर पत्रकारों द्वारा जब पैसों की मांग की जाती तो बड़ी बेशर्मी से उनसे कह दिया जाता की पत्र भेजना बन्द कर दें| उस समय इन पत्रों के पाठक भी कम थे परन्तु धीरे धीरे लोगों की मनोवृत्ति में सुधार हुआ, साक्षरता बढ़ी, लोग जागरूक हुए, शिक्षित पाठक वर्ग का ध्यान हिंदी पत्र पत्रिकाओं की ओर आकर्षित हुआ, इस तरह देश में ज्यों ज्यों राष्ट्रीयता का विकास हुआ और भारतीय जनमानस पर उसका प्रभाव जमता चला गया, जो कि आज सूचना के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाये हुए है और आशा है कि भारतीय पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच्चाई बरक़रार बनी रहेगी|
अजीत कुमार, (इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एन एस एस पुरस्कार से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)                          
एम०जे० छात्र (लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, लखनऊ)           
  Mob- 09454054207, Email- ajitkushwaha1992@gmail.com

Monday, 10 November 2014

आधुनिक शिक्षानीति - एक प्रश्न




प्रशान्त (पृथ्वी)
अगर किसी देश के विकास का अंदाज़ा लगाना हो तो उसके युवाओ की ओर देखना बहुत ज़रुरी है; क्योकि उस देश के भाग्य निर्माता, भविष्य के कर्ता-धर्ता उस देश के युवा ही होंगे| आज हमारा भारतवर्ष युवाओ का देश है हमारी लगभग 60% जनता आज युवा है विद्वानों का कहना है कि भविष्य में हम युवाशक्ति के निर्यातक होगे अर्थात् पूरे विश्व का भार हमारे देश के युवाओ पर ज्यादा है|
 आज मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि जिस युवा के कंधे पर अपने देश और विश्व का भार है, क्या वे अपने भविष्य का भार उठाने के काबिल हैं यह एक बड़ा सवाल आज हमारा भविष्य हमसे पूछ रहा है इस सवाल का ज़वाब आज हमारी दम तोडती शिक्षा व्यवस्था दे रही है |
आज इस देश के युवाओ का भविष्य अंधेरे में डूबता हुआ नज़र आ रहा है शिक्षा की पहली सीढ़ी प्राइमरी विद्यालयों में शिक्षकों के अभाव में निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के मनसूबे पर पानी फेरने पर सरकार आमादी है| मज़ेदार बात यह है कि  शिक्षा अधिकार कानून के तहत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए कक्षा 1 से 8 तक के विद्यालयों में शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण शिक्षक ही पढ़ाने के योग्य होंगे लेकिन चौकाने वाले आकंडे यह है कि इस परीक्षा में केवल लगभग पांच फीसदी छात्र ही पास हुए है इससे यह साफ नज़र आता है कि आज हमारी प्राइमरी से लेकर स्नातक परास्नातक के प्रशिक्षण की गुणवत्ता बहुत ही दोयम दर्ज़े की है, आज जिस तरह से युवा छात्रो को कॉलेजों में केवल डिग्री दी जाती है, कुशलता (विचार) नहीं| यह हमारी शिक्षानीति पर एक सवालिया निशान लगाती है
आज प्रशासन से ले कर शिक्षक, सरकार सभी जानबूझकर शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रहे है इससे शिक्षा के ठेकेदारों को सीधा लाभ हो रहा है वे नेताओ के साथ मिलकर बच्चों को पास करने की रणनीति पर काम  करते है,आज भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढनें के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 45 हजार करोड़ रुपये ख़र्च करते है क्योंकि भारतीय विश्वविदयालो में पढाई का स्तर काफी घटिया है, मैनेजमेंट गुरु पीटर ड्रंकर  ने  ऐलान किया है कि “आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनियाभर के किसी समाज से ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक समाज बन जाएगा दुनिया में गरीब देश शायद समाप्त हो जाए,लेकिन किसी देश की समृद्धि का स्तर इस बात से आका जाएगा कि वहां की शिक्षा का स्तर किस तरह का है’’ देखा जाए तो भारतीय शिक्षा पद्धति आज़ संक्रमण काल से गुजर रही,वह दिन दूर नहीं की आने वाले समय में  हम हिंगलिश ज्ञान वाले युवा की नई पीढ़ी सामने देखेंगे| जो अपनी मातृभाषा को हेय दृष्टि से देखेगी और जो समाज या देश अपनी भाषा को खो देगा,तो इसमें कोई शक नहीं है कि हम अपनी पहचान और एकता को खो बठेगे जो हमारे हजारो सालो की संस्कृति की देन है,
कहा जाए कि विश्व का विकास आज़ भारत के विकास में छिपा है,और भारत का विकास भारत के सही मूल्यों वाली शिक्षा पद्धति को अपनाकर हो सकता है|तो निःसंदेह हम युग निर्माता देश है, इसके लिए हमारी शिक्षानीति सही दिशा में होनी चाहिए,आज शिक्षकों,प्रशासन के अधिकारियों और देश के नेताओं को गंभीरता से इस विषय पर सोचना होगा नहीं तो आने वाली पीढ़ी उनसे एक सवाल करेगी और वे अपना सिर झुका देंगे, और तब ये कोमल मस्तिष्क वाले युवा सड़कों पर उतरने लगेंगे क्योकि इनके पूर्वज भगतसिंह आज़ाद, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी जैसे नेता रहे है और तब पूरा विश्व इसका नुकसान सहेगा, इसलिए ये गुलामी वाली शिक्षानीति को सुधारने की ज़रूरत है और तब हम पूर्णस्वतंत्र होगे और विश्वगुरु भी बनेगे|
                                                                                                            
                                                                             

                           प्रशान्त मिश्र
                                                   बी० ए० तृतीय वर्ष 
                                             छात्र राजनीति विज्ञान,इतिहास
                                           श्री जय नारायण पी० जी० कालेज

                                                   लखनऊ 

Sunday, 9 November 2014

भारत में युवा शक्ति-एक वरदान

अजीत कुमार
हम सब जानते हैं कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। आज भारत में दूसरे देशों से सबसे ज्यादा युवा बसते हैं। युवा वर्ग वह वर्ग होता है जिसमें 14 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक के लोग शामिल होते हैं| भारत निर्वाचन आयोग के मतदाता जागरूकता से लेकर, भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आन्दोलन तक, गोमती सफाई अभियान से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक, कन्या भ्रूण हत्या हो या महिला हिंसा के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने के लिए युवाओं की सबसे ज्यादा सहभागिता है| आज भारत देश में इस आयु के लोग सबसे बड़ी संख्या में मौजूद है। यह एक ऐसा वर्ग है जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से सबसे ज्यादा ताकतवर है। जो देश और अपने परिवार के विकास के लिए हर संभव प्रयत्न करते हैं।

देश जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल की देश कौन बनाता है? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थी, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक... आखिर कौन? शायद यह सब मिलकर देश बनाते होंगे.... लेकिन फिर भी एक और प्रश्न यह है कि इनमे से सर्वाधिक भागीदारी है किसकी? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसका जिक्र तक नहीं हुआ...... बात हो रही है युवाओं की.... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी है|  
     लोकतंत्र के निर्माता और भाग्य विधाता यह युवा वर्ग ही है, इसलिए जहाँ एक तरफ भारत के लिए ख़ुशी की बात है, कि हमारी जनसँख्या का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा युवाओं का है..... जो वर्ग सामाजिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, किसी भी देश को बनाने में या लोकतंत्र के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इस युवा वर्ग की है, लेकिन सभी बुराइयों को युवाओं पर थोप देना उचित नहीं है, क्योंकि हर एक गलती का जिम्मेदार यह युवा वर्ग ही नहीं बल्कि और लोग भी है, क्या कभी किसी ने युवाओं के हालात पर गौर करने की कोशिश की? क्या कभी इन युवाओं की भावनाओं को समझने की कोशिश की? नहीं.....
             हमें अपने वर्तमान और भविष्य को समझने से पहले अपने इतिहास को जानना होगा| युवा ही वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है, आज भारत ने अन्य देशों की तुलना में अच्छी खासी प्रगति की है। इसमें सबसे बड़ा योगदान शिक्षा का है। आज भारत का हर युवा अच्छी से अच्छी शिक्षा पा रहा है। उन्हें पर्याप्त रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, आज भारत का युवा वर्ग ऊंचाईयों को छू रहा है | हमारी युवा शक्ति को देखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की गई भविष्यवाणी में कहा गया कि हम जल्द ही एक पूर्ण विकसित राष्ट्र में तब्दील हो जायेंगे, भारत विश्व की महान सैन्य और आर्थिक शक्ति बन जायेगा |
     वर्तमान में भारत के युवाओं की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है| संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में भारत इस समय सबसे युवा देश है, यहाँ 35.6 करोड़ आबादी युवा है जबकि युवाओं की आबादी में दूसरे स्थान पर चीन 26.9 करोड़ युवाओं के साथ है| रिपोर्ट के अनुसार चीन की कुल आबादी से भारत की जनसँख्या कम होने के बावजूद भी भारत में सबसे ज्यादा युवा है भारत में 28 प्रतिशत आबादी की आयु 10 वर्ष से 24 वर्ष के बीच है|
संयुक्त राष्ट्र जनसँख्या कोष (यूएनएफपीए) की विश्व जनसँख्या रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में सबसे ज्यादा युवाओं को संख्या है| इस युवा शक्ति में शिक्षा, स्वास्थ्य का निवेश करके अर्थव्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सकता है| युवाओं को उनके अधिकार दिए जाने भी जरूरी हैं क्योकि ये अपना भविष्य पाने में तभी सक्षम होंगे जब उनके पास कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और जीवन में बेहतर विकल्प मौजूद होंगे| आज के समय में दुनिया में 1.8 अरब युवा है जिनके पास दुनिया बदलने का उत्तम अवसर है| दुनिया के पास पहले इतने युवा कभी नहीं थे|
    राष्ट्र चेतना के कीर्ति पुरुष, युवा वर्ग के आदर्श योद्धा स्वामी विवेकानन्द युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा का स्रोत हैं, एक युवा संयासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखरने वाले, साहित्य दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान अपनी ओज पूर्ण वाणी से लोगों के दिल को छू लेने वाले स्वामी विवेकानंद जी निःसंदेह विश्व गुरु थे | स्वामी विवेकानंद जी ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है, उनका मानना था कि नौजवान पीढ़ी अगर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल देश की तरक्की में करें तो राष्ट्र को एक नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता है क्योकि युवा ही वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है | देश की युवा पीढ़ी पर उनकी विशेष आस्था थी, उन्होंने कहा था- तुम सबका जन्म ही इसीलिए हुआ हैं अपने में विश्वास रखो महान आत्म विश्वास से ही महान कार्य संपन्न होते हैं, निरंतर आगे बढ़ते रहो|”   
स्वामी विवेकानंद जी का युवाओं के लिये सन्देश था कि अपने मन और शरीर को स्वस्थ बनाओ ताकि धर्म अध्यात्म ग्रंथों में बताये आदर्शों में आचरण कर सको, इसके साथ- साथ आज के युवाओं में जरुरत है ताकत की और आत्म-विश्वास की, फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल की| उनका मानना था कि शिक्षा ही एक ऐसा आधार है, जिसके द्वारा राष्ट्र को नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता क्योकि जब तक देश की रीढ़ युवा अशिक्षित रहेंगे तब तक देश आज़ादी मिलना गरीबी हटाना कठिन होगा, इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोये हुये युवकों को जगाने का कार्य शुरू कर दिया|
     विश्व में जितने भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं उसमें सभी में युवाओं के लगन और बलिदान का अतुलनीय योगदान रहा है| शायद इसलिए कहा जाता है- जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जवानी चलती है| हमारी युवा शक्ति देश की तक़दीर और तस्वीर बदलने का जज्बा रखती है| एक नया आइना दिखाने की क्षमता रखती है| अनुभवी लोगो का मार्गदर्शन हमारी युवा शक्ति को अपनी सकारात्मक ऊर्जा राष्ट्र हित में लगाने को प्रेरित करता है |
समय का चक्र कभी थमता नहीं और उसी के अनुरूप हमेशा परिवर्तन भी होते रहते है क्योकि युवा हमेशा प्रगति एवं बदलाव की ओर सक्रिय रहते हैं| एक सुदृढ़, संगठित और उन्नत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए, भारत को पुनः विश्व-गुरु की भूमिका में स्थापित करने के लिए युवाओं को अपना सब कुछ राष्ट्र को समर्पित करना होगा, आने वाले समय में राष्ट्र एवं लोकतंत्र में युवाओं का प्रतिनिधित्व रहना भी तय है| हमें अपनी सोंच और विचारों से उन नए अवसरों की तलाश करनी होगी जो न केवल स्वयं को आगे बढाने में बल्कि दूसरों को आगे बढ़ने मददगार साबित होगी| इस कार्य के साथ-साथ युवाओं को अपनी नैतिकता का ध्यान रखना होगा|
समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना होगा कि राष्ट्र के सन्मुख आज जितनी भी चुनौतियां है हम उनका डटकर सामना करेंगे | युवाओं को अपनी भारतीय संस्कृति का ध्यान रखते हुए, समाज के ज्वलन्त मुद्दों पर गहन चिंतन के साथ प्रतिक्रिया करने की जरुरत है ताकि हम अपने देश, समाज एवं राष्ट्र को नये रूप में देख सकें | सर जेम्स के शब्दों में “युवा ऐसा पक्षी है जो टूटे हुए अंडे और बेबसी से स्वन्त्रता और आशा के खुले असमान में पंख फैला रहा है क्योकि युवा खोज और सपनों के द्वारा अपने देश को समृद्धि प्रदान कर सकता है|” किसी भी कार्य में सफलता की उम्मीदे उस समय और फलीभूत होने लगती है, जब उसमे योग्य व्यक्तियों के अनुभव का समावेश कर लिया जाए| स्वन्त्रता के पश्चात् देश और सामाज का नेतृत्व करने वालों का दायित्व था कि लोगो को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक, शिक्षित और प्रशिक्षित करना लेकिन नेतृत्वकर्ताओ  ने हमें इससे वंचित कर दिया|
सरदार भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाक़ उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशनसिंह आदि क्रान्तिकारी जो देश की स्वतंत्रता के नाम पर मर मिटे, इन्होंने देशभक्ति को कभी अपना पेशा नहीं बनाया, ऐसे क्रांतिकारी जो हमारे आदर्श है हमें उनके चरित्र एवं आचरण की श्रेष्ठता को अपने कर्तव्यों के माध्यम से जीवन में अपनाना होगा| वर्तमान स्थिति में देश को आवश्यकता है हमारे कठोर परिश्रम व कर्तव्यपालन की जिसके द्वारा हम समर्थ स्वराज के निर्माण में सहयोग कर सकें क्योकि युवाओं का हुजूम अपने ताकत एवं बल के द्वारा राष्ट्र और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूरकर सफल राष्ट्र के निर्माण की संज्ञा दे सकते हैं|
इसी का मुख्य कारण है कि आज भी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम, प्रेरक-भाषण, देश-भक्ति के विचार कहीं गली मुहल्लों में नहीं बल्कि कालेजों एवं विश्वविद्यालयों में दिए जाते हैं जहाँ पर युवाओं को फ़ौज होती है और उसमे नए विचारों को अमल करने की उत्सुकता होती है| यही कारण है कि अन्ना-हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अनसन में युवा वर्ग अपने कालेजों को छोड़कर अन्ना जी के समर्थन में सड़क पर आ गये, वही 16 वीं लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र के निर्माण में अधिकतर युवाओं ने मतदान करके अपनी भागीदारी एवं सहभागिता का जिम्मा सम्भाला |



           “मुश्किल जरुर है मगर ठहरा नहीं हूँ मै, मन्जिल से जरा कह दो अभी पहुँचा नहीं हूँ मै ।”
                                           अजीत कुशवाहा, (इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एन एस एस पुरस्कार से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)  
 विधि छात्र (के०के०सी०), एम०जे० छात्र (लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, लखनऊ)
 Mob- 09454054207, Email- ajitkushwaha1992@gmail.com