Monday, 10 November 2014

आधुनिक शिक्षानीति - एक प्रश्न




प्रशान्त (पृथ्वी)
अगर किसी देश के विकास का अंदाज़ा लगाना हो तो उसके युवाओ की ओर देखना बहुत ज़रुरी है; क्योकि उस देश के भाग्य निर्माता, भविष्य के कर्ता-धर्ता उस देश के युवा ही होंगे| आज हमारा भारतवर्ष युवाओ का देश है हमारी लगभग 60% जनता आज युवा है विद्वानों का कहना है कि भविष्य में हम युवाशक्ति के निर्यातक होगे अर्थात् पूरे विश्व का भार हमारे देश के युवाओ पर ज्यादा है|
 आज मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है कि जिस युवा के कंधे पर अपने देश और विश्व का भार है, क्या वे अपने भविष्य का भार उठाने के काबिल हैं यह एक बड़ा सवाल आज हमारा भविष्य हमसे पूछ रहा है इस सवाल का ज़वाब आज हमारी दम तोडती शिक्षा व्यवस्था दे रही है |
आज इस देश के युवाओ का भविष्य अंधेरे में डूबता हुआ नज़र आ रहा है शिक्षा की पहली सीढ़ी प्राइमरी विद्यालयों में शिक्षकों के अभाव में निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के मनसूबे पर पानी फेरने पर सरकार आमादी है| मज़ेदार बात यह है कि  शिक्षा अधिकार कानून के तहत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए कक्षा 1 से 8 तक के विद्यालयों में शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण शिक्षक ही पढ़ाने के योग्य होंगे लेकिन चौकाने वाले आकंडे यह है कि इस परीक्षा में केवल लगभग पांच फीसदी छात्र ही पास हुए है इससे यह साफ नज़र आता है कि आज हमारी प्राइमरी से लेकर स्नातक परास्नातक के प्रशिक्षण की गुणवत्ता बहुत ही दोयम दर्ज़े की है, आज जिस तरह से युवा छात्रो को कॉलेजों में केवल डिग्री दी जाती है, कुशलता (विचार) नहीं| यह हमारी शिक्षानीति पर एक सवालिया निशान लगाती है
आज प्रशासन से ले कर शिक्षक, सरकार सभी जानबूझकर शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रहे है इससे शिक्षा के ठेकेदारों को सीधा लाभ हो रहा है वे नेताओ के साथ मिलकर बच्चों को पास करने की रणनीति पर काम  करते है,आज भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढनें के लिए हर साल सात अरब डॉलर यानी करीब 45 हजार करोड़ रुपये ख़र्च करते है क्योंकि भारतीय विश्वविदयालो में पढाई का स्तर काफी घटिया है, मैनेजमेंट गुरु पीटर ड्रंकर  ने  ऐलान किया है कि “आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज दुनियाभर के किसी समाज से ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक समाज बन जाएगा दुनिया में गरीब देश शायद समाप्त हो जाए,लेकिन किसी देश की समृद्धि का स्तर इस बात से आका जाएगा कि वहां की शिक्षा का स्तर किस तरह का है’’ देखा जाए तो भारतीय शिक्षा पद्धति आज़ संक्रमण काल से गुजर रही,वह दिन दूर नहीं की आने वाले समय में  हम हिंगलिश ज्ञान वाले युवा की नई पीढ़ी सामने देखेंगे| जो अपनी मातृभाषा को हेय दृष्टि से देखेगी और जो समाज या देश अपनी भाषा को खो देगा,तो इसमें कोई शक नहीं है कि हम अपनी पहचान और एकता को खो बठेगे जो हमारे हजारो सालो की संस्कृति की देन है,
कहा जाए कि विश्व का विकास आज़ भारत के विकास में छिपा है,और भारत का विकास भारत के सही मूल्यों वाली शिक्षा पद्धति को अपनाकर हो सकता है|तो निःसंदेह हम युग निर्माता देश है, इसके लिए हमारी शिक्षानीति सही दिशा में होनी चाहिए,आज शिक्षकों,प्रशासन के अधिकारियों और देश के नेताओं को गंभीरता से इस विषय पर सोचना होगा नहीं तो आने वाली पीढ़ी उनसे एक सवाल करेगी और वे अपना सिर झुका देंगे, और तब ये कोमल मस्तिष्क वाले युवा सड़कों पर उतरने लगेंगे क्योकि इनके पूर्वज भगतसिंह आज़ाद, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी जैसे नेता रहे है और तब पूरा विश्व इसका नुकसान सहेगा, इसलिए ये गुलामी वाली शिक्षानीति को सुधारने की ज़रूरत है और तब हम पूर्णस्वतंत्र होगे और विश्वगुरु भी बनेगे|
                                                                                                            
                                                                             

                           प्रशान्त मिश्र
                                                   बी० ए० तृतीय वर्ष 
                                             छात्र राजनीति विज्ञान,इतिहास
                                           श्री जय नारायण पी० जी० कालेज

                                                   लखनऊ 

No comments:

Post a Comment