Friday, 17 October 2014

सुख और समृद्धि का आगमन है दीपावली...




     
               दिवाली हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी बड़े धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है, इस दिन हम सब अपने-अपने घर एवं प्रतिष्ठान में सुख और समृद्धि आने की कामना करते हैं | इसी दिन श्री रामजी के वनवास से लौटने के बाद उनके आने की ख़ुशी में दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं | इस ख़ुशी का इजहार हमें दीप जलाकर करना चाहिए हमें खतरनाक पटाखों एवं बमों से बचना चाहिए जो कि हमारे लिए और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक हैं, अब इस महंगाई के दौर में इन पटाखों की कीमत काफी अधिक हो गयी है हमें इनका प्रयोग कम से कम करना चाहिए | हमें अपनी सुख- समृद्धि के साथ-साथ दूसरों की खुशियाँ और सुख-शान्ति की मंगल कामना करना चाहिए जिससे हम एक अच्छे एवं समृद्धि समाज का निर्माण कर सकें और भारतवर्ष को एक आदर्श राष्ट्र की परिभाषा दे सकें |  


                          अजीत कुशवाहा, (इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एन एस एस पुरस्कार से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)                   विधि छात्र (के०के०सी०), एम०जे० छात्र (लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, लखनऊ)                                                                                        Mob- 09454054207, Email- ajitkushwaha1992@gmail.com

Saturday, 11 October 2014

हिंसा नहीं सम्मान चाहिए..............


                                                                
                                                                         अजीत कुमार

         कैसे हो भिक्षा का अन्त और शिक्षा की शुरुआत.....

         बालिका हर राष्ट्र के विकास की धरोहर होती है, लडकियाँ समाज, परिवार एवं राष्ट्र को आगे बढाने में एक चक्र का कार्य करती हैं लेकिन उस बालिका का जीवन जन्म से ही पहले नरक बना दिया जाता है, भ्रूण हत्या कर दी जाती है | इनके प्रति हिंसा अक्सर अनदेखी, अन्सुनी और उलझी हुई रह जाती है, बहुत से बच्चे अपने जीवन में कभी न कभी किसी हिंसा का शिकार होते है चाहे वह शारीरिक हिंसा हो, मानसिक हो अथवा सेक्सुअल हिंसा हो |

        किसी मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च एवं मस्जिद के पास भारी संख्या में हम बच्चों को देखते है, जो कि इतनी छोटी उम्र में अपने  पेट भरने के लिए सबके आगे अपने  हाथ फैलाने की होड़ लगाये रहते हैं | प्रदेश की राजधानी लखनऊ जैसे नवाबों के शहर में चाहें वह गंज की गलियां हो या आलीशान लखनऊ जंक्शन या सहारागंज जैसे माल , इन सब जगहों पर इन बच्चों का जमावड़ा देखा जा सकता है, जो कि किसी न किसी तरह से शोषित किये जाते हैं, इन परिस्थितियों से निपटने के लिए जरूरत है शिक्षा की, जागरूकता की, सहानुभूति एवं शासन- प्रशासन को नजरिया बदलने की , इसके लिए कानून ही नहीं सरकार को भी पहल करनी होगी |
          भिक्षा वृत्ति न तो गरीबी का कारण है, न गरीबी का निवारण है, बल्कि भिक्षावृत्ति एक अभिशाप है | क्योंकि हम उन्हें एक बार भीख देकर जीवन भर के लिए भिखारी बना देते है, कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपने परिवार से अलग हो गये और उन्हें ठेके पर भीख मांगने को मजबूर किया जाता हैं जो की हमारे देश के लिए कलंक साबित हो रहे हैं इतना ही नहीं ये भिक्षा वृत्ति में शामिल बच्चे विदेशी पर्यटकों के सामने भी अपने हाँथ फैलाते हैं फिर इनके चित्र खींच कर विदेशों में भी दिखाए जाते हैं तब हमारा सिर शर्म से झुक जाता है, इससे निपटने के लिए जरुरत है, शिक्षा की |  
           बालिका शिक्षा भी हमारे देश की प्रमुख जरुरत है, शिक्षा ही मानव को मनुष्य बनाती है | देश के उज्ज्वल भविष्य के लिये हर एक माँ का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है, उसके लिए बालिकाओं का शिक्षित होना बहुत जरुरी है, बालिकाओं के जीवन की  सभी समस्याओं की जड़ है अशिक्षा, इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता और अब समाज ही नहीं स्वयं महिलाएं भी सहमत हैं |
              शिक्षा के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में आइकन रूप में पहचान बनाने वाली 17 वर्षीय मलाला युसुफजई ने बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य करने की मांग की, जिसके लिए 2012 में उन्हें तालिबान की गोली का शिकार भी होना पड़ा, इस तरह  मलाला सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, भारत जब तक अपनी बेटियों का मूल्य नहीं पहचानेगा, उनका स्वागत नहीं करेगा, उन्हें घर एवं घर से बाहर सुरक्षित नहीं रखेगा तब तक भारत अपने आपको एक प्रगतिशील प्रजातान्त्रिक देश नहीं कह सकता |
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“साथ चलता है दुवाओं का काफिला, किस्मत से कह दो अभी तनहा नहीं हूँ मैं’|
      
(अजीत कुमार महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
                                                        












Thursday, 9 October 2014

काश, नो स्मोकिंग सच हो जाता............


                                                                                                                                                                                                                                                           अजीत कुमार                                                                                       

         धूम्रपान, नशा, सिगरेट, पान-मसाला इत्यादि गम्भीरता के साथ युवाओं से लेकर किशोरों तक में धीरे-धीरे अपनी धाक जमाते चले जा रहे हैं। इस तहजीब के शहर लखनऊ लोग यह भी नहीं जानते कि वह बस मे यात्रा कर रहे हैं या सार्वजनिक स्थान पर अथवा हमारे पड़ोस में बैठे व्यक्ति को स्मोकिंग की वजह से परेशानी हो रही है। यहाँ तक की लोग बस में बैठकर पान-मसाला थूकते हैं जो कि दूसरों के ऊपर तक आ जाता है या रेलवे स्टेशन, अस्पताल, कालेज यहाँ तक कि मन्दिरों के आस-पास भी पान- मसाले की पीक मार देते हैं।


        धूम्रपान खुद के लिये तो हानिकारक है ही लेकिन पास में बैठे व्यक्ति के लिये उससे भी ज्यादा हानिकारक है। सिगरेट इत्यादि में पहले की अपेक्षा अब तक काफी बदलाव आ गये हैं जो कि अब कई गुना ज्यादा खतरनाक हो गई है। सरकार ने इसे रोकने के लिये कई यतन किये लेकिन यह सम्भव नही हो सका जिसके उपरान्त सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 एक सराहनीय व्यापक तम्बाकू नियन्त्रण कानून है। ऐसा व्यापक तम्बाकू नियन्त्रण कानून विश्व के कुछ ही देशों में है, परन्तु इसका परिपालन बहुत ही कमजोर तरीकों से किया जा रहा है। 

            किसी भी शैक्षिक संस्थान के 100 गज के भीतर तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध है, लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। कई सार्वजनिक स्थान जो कि नो स्मोकिंग जोन की श्रेणी में आते हैं। वहाँ पर धूम्रपान रोकने के लिये केवल एक स्टीकर मात्र है न तो सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के अन्तर्गत कोई जुर्माना वसूलने का प्राविधान है और न ही लोगों में समझदारी है। स्मोकिंग के द्वारा हम सिर्फ अपने घर-समाज, शहर को ही नहीं बल्कि अपने आप को भी दूषित करते हैं। 
               एक अप्रैल २०१३ से नए एवं प्रभावी, लुभावने विज्ञापन जो कि युवा पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित करते है इन सबसे बचने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तम्बाकू उत्पादों पर चित्रमय चेतावनी लागू कर दी गई जो कि एक सराहनीय कदम है लगभग सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी कार्यालयों के अन्दर नो स्मोकिंग का स्टीकर व तख्ती तो नजर आती है परन्तु इसके साथ-साथ वहां के कर्मचारी एवं अधिकारी भी स्मोकिंग करते नजर आते हैं इसे रोकने के लिये जरुरत है जागरूकता की और अपनी जिम्मेदारी निभाने की ताकि हम एक अच्छे एवं स्वच्छ समाज का निर्माण कर सके इसे रोकने के लिए सरकार द्वारा व्यापक कदम उठाये जायें तथा विज्ञापन एवं दुष्परिणाम पर विशेष ध्यान दिया जाये वास्तव में स्मोकिंग एवं शराब पर प्रतिबन्ध लगाना मानव जाति के लिए अत्यंत हितकारी होगा। 
  (अजीत कुशवाहा महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
                                                       

Wednesday, 8 October 2014

युवाओं के प्रेरणा स्रोत: स्वामी विवेकानंद


अजीत कुशवाहा
          राष्ट्र चेतना के कीर्ति पुरुष, युवा वर्ग के आदर्श योद्धा स्वामी विवेकानन्द युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा का स्रोत हैं, एक युवा संयासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखरने वाले, साहित्य दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान अपनी ओज पूर्ण वाणी से लोगों के दिल को छू लेने वाले स्वामी विवेकानंद जी निःसंदेह विश्व गुरु थे | स्वामी विवेकानंद जी ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है, उनका मानना था कि नौजवान पीढ़ी अगर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल देश की तरक्की में करें तो राष्ट्र को एक नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता है क्योकि युवा ही वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है | देश की युवा पीढ़ी पर उनकी विशेष आस्था थी, उन्होंने कहा था- तुम सबका जन्म ही इसीलिए हुआ हैं अपने में विश्वास रखो महान आत्म विश्वास से ही महान कार्य संपन्न होते हैं, निरंतर आगे बढ़ते रहो|”
         स्वामी विवेकानंद जी ने साबित किया कि राष्ट्र के युवा चाहे तो दुनिया में विचारों की क्रांति लाकर अपनी पीढ़ियों को एक संपन्न विरासत दे सकते हैं | स्वामी विवेकानन्द जी में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी| वह भारत भूमि को परम स्वर्ग मानते थे और भारत माता को एक आराध्य देवी मानते थे, स्वामी विवेकानन्द जी ने संकीर्ण जातिवाद का खण्डन किया यद्यपि वह भारतीय प्राचीन संस्कृति के महान पुजारी थे और उनका प्रचार भी करते थे परन्तु साथ ही प्रचलित रुढिवादिता और जातिवाद के विरुद्ध एक विध्वंसकारी योद्धा के समान संघर्ष भी किया | उनका मानना था कि वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज को खोखला बना रही है, विवेकानन्द जी का राष्ट्र के पुनर्निर्माण के प्रति लगाव ने ही उन्हें 1893 में शिकागो धर्म संसद (सम्मेलन) में जाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गये थे, परिषद् में उनके प्रवेश की अनुमति मिलनी ही कठिन हो गयी क्योकि यूरोपियन वर्ग को भारत के नाम से ही घृणा थी, किसी तरह उन्हें 11 सितम्बर 1893 को समय मिला जिससे उन्होंने अलौकिक जगत को चौंका दिया, अमेरिका ने स्वीकार लिया कि वस्तुतः भारत ही जगत गुरु था और रहेगा | उन्ही का व्यक्तित्व था जिसने भारत एवं हिन्दू धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेश में जागृत किया |
            स्वामी विवेकानंद जी की युवाओं के लिये सन्देश था कि अपने मन और शरीर को स्वस्थ बनाओ ताकि धर्म अध्यात्म ग्रंथों में बताये आदर्शों में आचरण कर सको, इसके साथ- साथ आज के युवाओं में जरुरत है ताकत की और आत्म-विश्वास की, फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल की | उनका मानना था कि शिक्षा ही एक ऐसा अधार है, जिसके द्वारा राष्ट्र को नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता क्योकि जब तक देश की रीढ़ युवाअशिक्षित रहेंगे तब तक देश आज़ादी मिलना गरीबी हटाना कठिन होगा, इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोये हुये युवकों को जगाने का कार्य शुरू कर दिया |
                                                                                                                       
                (अजीत कुशवाहा महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
                                                        छात्र,  विधि (लखनऊ विश्वविद्यालय)  व
                 एम. जे. (लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकरिता संस्थान, लखनऊ)
     Email- ajitkushwaha1992@gmail.com, Mob- 09454054207, 09044230725