Wednesday, 8 October 2014

युवाओं के प्रेरणा स्रोत: स्वामी विवेकानंद


अजीत कुशवाहा
          राष्ट्र चेतना के कीर्ति पुरुष, युवा वर्ग के आदर्श योद्धा स्वामी विवेकानन्द युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा का स्रोत हैं, एक युवा संयासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखरने वाले, साहित्य दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान अपनी ओज पूर्ण वाणी से लोगों के दिल को छू लेने वाले स्वामी विवेकानंद जी निःसंदेह विश्व गुरु थे | स्वामी विवेकानंद जी ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है, उनका मानना था कि नौजवान पीढ़ी अगर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल देश की तरक्की में करें तो राष्ट्र को एक नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता है क्योकि युवा ही वर्तमान का निर्माता एवं भविष्य का नियामक होता है | देश की युवा पीढ़ी पर उनकी विशेष आस्था थी, उन्होंने कहा था- तुम सबका जन्म ही इसीलिए हुआ हैं अपने में विश्वास रखो महान आत्म विश्वास से ही महान कार्य संपन्न होते हैं, निरंतर आगे बढ़ते रहो|”
         स्वामी विवेकानंद जी ने साबित किया कि राष्ट्र के युवा चाहे तो दुनिया में विचारों की क्रांति लाकर अपनी पीढ़ियों को एक संपन्न विरासत दे सकते हैं | स्वामी विवेकानन्द जी में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी| वह भारत भूमि को परम स्वर्ग मानते थे और भारत माता को एक आराध्य देवी मानते थे, स्वामी विवेकानन्द जी ने संकीर्ण जातिवाद का खण्डन किया यद्यपि वह भारतीय प्राचीन संस्कृति के महान पुजारी थे और उनका प्रचार भी करते थे परन्तु साथ ही प्रचलित रुढिवादिता और जातिवाद के विरुद्ध एक विध्वंसकारी योद्धा के समान संघर्ष भी किया | उनका मानना था कि वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज को खोखला बना रही है, विवेकानन्द जी का राष्ट्र के पुनर्निर्माण के प्रति लगाव ने ही उन्हें 1893 में शिकागो धर्म संसद (सम्मेलन) में जाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गये थे, परिषद् में उनके प्रवेश की अनुमति मिलनी ही कठिन हो गयी क्योकि यूरोपियन वर्ग को भारत के नाम से ही घृणा थी, किसी तरह उन्हें 11 सितम्बर 1893 को समय मिला जिससे उन्होंने अलौकिक जगत को चौंका दिया, अमेरिका ने स्वीकार लिया कि वस्तुतः भारत ही जगत गुरु था और रहेगा | उन्ही का व्यक्तित्व था जिसने भारत एवं हिन्दू धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेश में जागृत किया |
            स्वामी विवेकानंद जी की युवाओं के लिये सन्देश था कि अपने मन और शरीर को स्वस्थ बनाओ ताकि धर्म अध्यात्म ग्रंथों में बताये आदर्शों में आचरण कर सको, इसके साथ- साथ आज के युवाओं में जरुरत है ताकत की और आत्म-विश्वास की, फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल की | उनका मानना था कि शिक्षा ही एक ऐसा अधार है, जिसके द्वारा राष्ट्र को नये मुकाम तक पहुचाया जा सकता क्योकि जब तक देश की रीढ़ युवाअशिक्षित रहेंगे तब तक देश आज़ादी मिलना गरीबी हटाना कठिन होगा, इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोये हुये युवकों को जगाने का कार्य शुरू कर दिया |
                                                                                                                       
                (अजीत कुशवाहा महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
                                                        छात्र,  विधि (लखनऊ विश्वविद्यालय)  व
                 एम. जे. (लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकरिता संस्थान, लखनऊ)
     Email- ajitkushwaha1992@gmail.com, Mob- 09454054207, 09044230725

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