Saturday, 11 October 2014

हिंसा नहीं सम्मान चाहिए..............


                                                                
                                                                         अजीत कुमार

         कैसे हो भिक्षा का अन्त और शिक्षा की शुरुआत.....

         बालिका हर राष्ट्र के विकास की धरोहर होती है, लडकियाँ समाज, परिवार एवं राष्ट्र को आगे बढाने में एक चक्र का कार्य करती हैं लेकिन उस बालिका का जीवन जन्म से ही पहले नरक बना दिया जाता है, भ्रूण हत्या कर दी जाती है | इनके प्रति हिंसा अक्सर अनदेखी, अन्सुनी और उलझी हुई रह जाती है, बहुत से बच्चे अपने जीवन में कभी न कभी किसी हिंसा का शिकार होते है चाहे वह शारीरिक हिंसा हो, मानसिक हो अथवा सेक्सुअल हिंसा हो |

        किसी मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च एवं मस्जिद के पास भारी संख्या में हम बच्चों को देखते है, जो कि इतनी छोटी उम्र में अपने  पेट भरने के लिए सबके आगे अपने  हाथ फैलाने की होड़ लगाये रहते हैं | प्रदेश की राजधानी लखनऊ जैसे नवाबों के शहर में चाहें वह गंज की गलियां हो या आलीशान लखनऊ जंक्शन या सहारागंज जैसे माल , इन सब जगहों पर इन बच्चों का जमावड़ा देखा जा सकता है, जो कि किसी न किसी तरह से शोषित किये जाते हैं, इन परिस्थितियों से निपटने के लिए जरूरत है शिक्षा की, जागरूकता की, सहानुभूति एवं शासन- प्रशासन को नजरिया बदलने की , इसके लिए कानून ही नहीं सरकार को भी पहल करनी होगी |
          भिक्षा वृत्ति न तो गरीबी का कारण है, न गरीबी का निवारण है, बल्कि भिक्षावृत्ति एक अभिशाप है | क्योंकि हम उन्हें एक बार भीख देकर जीवन भर के लिए भिखारी बना देते है, कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपने परिवार से अलग हो गये और उन्हें ठेके पर भीख मांगने को मजबूर किया जाता हैं जो की हमारे देश के लिए कलंक साबित हो रहे हैं इतना ही नहीं ये भिक्षा वृत्ति में शामिल बच्चे विदेशी पर्यटकों के सामने भी अपने हाँथ फैलाते हैं फिर इनके चित्र खींच कर विदेशों में भी दिखाए जाते हैं तब हमारा सिर शर्म से झुक जाता है, इससे निपटने के लिए जरुरत है, शिक्षा की |  
           बालिका शिक्षा भी हमारे देश की प्रमुख जरुरत है, शिक्षा ही मानव को मनुष्य बनाती है | देश के उज्ज्वल भविष्य के लिये हर एक माँ का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है, उसके लिए बालिकाओं का शिक्षित होना बहुत जरुरी है, बालिकाओं के जीवन की  सभी समस्याओं की जड़ है अशिक्षा, इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता और अब समाज ही नहीं स्वयं महिलाएं भी सहमत हैं |
              शिक्षा के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में आइकन रूप में पहचान बनाने वाली 17 वर्षीय मलाला युसुफजई ने बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य करने की मांग की, जिसके लिए 2012 में उन्हें तालिबान की गोली का शिकार भी होना पड़ा, इस तरह  मलाला सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, भारत जब तक अपनी बेटियों का मूल्य नहीं पहचानेगा, उनका स्वागत नहीं करेगा, उन्हें घर एवं घर से बाहर सुरक्षित नहीं रखेगा तब तक भारत अपने आपको एक प्रगतिशील प्रजातान्त्रिक देश नहीं कह सकता |
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“साथ चलता है दुवाओं का काफिला, किस्मत से कह दो अभी तनहा नहीं हूँ मैं’|
      
(अजीत कुमार महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
                                                        












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